अहरबाल (अंग्रेज़ी: Aharbal) भारत का एक पहाड़ी स्टेशन है जो जमूँ और कश्मीर मैं स्थित है।[1]
اہربال ( انگریزی: Aharbal) بھارت کا ایک پہاڑی مستقر ہے جو جموں و کشمیر میں واقع ہے۔ [1]


अहरबाल समुन्द्र की सतह से 2,266 मीटर बुलंदी पर स्थित है।
اہربال کی مجموعی آبادی 2,266 میٹر سطح دریا سے بلندی پر واقع ہے۔

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उबैद उर रहमान सिद्दीकी की जन्म भारत के प्रदेश उतर परदेश के जिला ग़ाज़ीपुर में 5 जून 1964ई. को मुहल्ला मछरहटह में हुई। इस समय भारत के अहम इतिहासकार और साहित्यकारों मैं इनका शुमार होता है. ग़ाज़ीपुर के एकमात्र इतिहासकार जिन्होंने प्रतिज्ञा वार प्राचीन दूर से दिल्ली सल्तनत दूर और मुग़ल सल्तनत के गुमशुदा इतिहास को लिखा करके मंज़रेआम पर लाने का काम क्या है. इसकी बना पर हिंदुस्तान के सम्राट अशोक क्लब ने इन्हें "ग़ाज़ीपुर का फाहीान" उपाधि से नवाज़ा है. साथ ही इनकी एक अहम 'ग़ाज़ीपुर वाला उबैद' नामक ब्लॉग है जो साहित्यिक, सामाजिक और राजनैतिक मंडलों में लोकप्रिय है.
عبید الرحمٰن صدیقی کی پیدائش بھارت کے صوبہ اتر پردیش کے ضلع غازی پور میں 5 جون 1964ء کو محلہ مچھرہٹہ میں ہوئی۔ اس وقت بھارت کے اہم مؤرخین اور ادیبوں میں ان کا شمار ہوتا ہے. غازی پور کے واحد تاریخ دان جنھوں نے عہد وار قدیم دور سے دہلی سلطنت دور اور مغلیہ سلطنت دور کی گمشدہ تاریخ کو قلمبند کرکے منظرعام پر لانے کا کام کیا ہے. اس کی بنا پر ہندوستان کے سمراٹ اشوک کلب نے ان کو "غازی پور کا فاہیان" لقب سے نوازا ہے. نیز ان کی ایک اہم کاوش 'غازی پور والا عبید' نامی بلاگ ہے جو ادبی، سماجی اور سیاسی حلقوں میں خاصا مقبول ہے.

उबैद उर रहमान सिद्दीकी ने शहर ग़ाज़ीपुर के मशहूर और मशहूर शिक्षा शील परिवार में आँख खोली जिसका असर इनके साहित्यिक और अन्वेषणशील यात्रा पर रहा. उबैद उर रहमान सिद्दीकी की प्रारम्भिक शिक्षा मदरसा दीनिया में कक्षा पंचम तक और तत्पश्चात कक्षा छठी तक मदरसा अज़ीमया में हुई. इसके बाद शहर के मशहूर और मशहूर शैक्षणिक संस्था मोहम्मडन एंग्लो हिन्दुस्तानी इंटर कॉलेज से जूनियर हाई स्कूल से लेकर इंटर तक की शिक्षा संपूर्ण करने के बाद ग़ाज़ीपुर के स्नातकोत्तर डिग्री कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल कर की 1984ई.में इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए. वहां एल.एल.बी और डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म की डिग्री हासिल की और फिर निजी तौर पर ऐम.ए.अंग्रेज़ी अली गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क्या, और इसके बाद दिल्ली का रुख क्या. इस बीच आई.ए.एस का परीक्षा पास की लेकिन साक्षात्कार में विफलता के कारण ग़ाज़ीपुर वापस آगए.आदर्श इंटर कॉलेज में अस्थायी लेक्चरर भी रहे लेकिन मन नहीं लगा. कुछ साल बाद भारत के मशहूर और मशहूर पत्रिका और अखबार मैं विषय लिखने लगे और ये सिलसिला अब तक जारी है.
عبید الرحمٰن صدیقی نے شہر غازیپور کے مشہور و معروف تعلیم یافتہ گھرانے میں آنکھ کھولی جس کا خاصا اثر ان کے ادبی اور تحقیقی سفر پر رہا. عبید الرحمن کی ابتدائی تعلیم مدرسہ دینیہ میں درجہ پنجم تک اور بعد ازاں درجہ ششم تک مدرسہ عظیمیہ میں ہوئی. اس کے بعد شہر کے مشہور و معروف تعلیمی ادارہ محمڈن اینگلو ہندوستانی انٹر کالج سے جونیر ہائی اسکول سے لیکر انٹرمیڈیٹ تک کی تعلیم مکمل کرنے کے بعد غازی پور کے پوسٹ گریجویٹ ڈگری کالج سے گریجویشن کی ڈگری حاصل کر کے 1984ء میں الہ آباد یونیورسٹی چلے گئے. وہاں ایل.ایل.بی اور ڈپلوما ان جرنلزم کی ڈگری حاصل کی اور پھر نجی طور پر ایم.اے.انگریزی علی گڑھ مسلم یونیورسٹی سے کیا، اور اس کے بعد دہلی کا رخ کیا. اس درمیان آئی.اے.ایس کا امتحان پاس کیا لیکن انٹرویو میں ناکامی کے سبب وطن غازی پور واپس آگئے. آدرش انٹر کالج میں عارضی لیکچرر بھی رہے لیکن دل نہیں لگا. کچھ سالوں بعد بھارت کے مشہور و معروف رسائل اور اخبارات میں مضامین لکھنے لگے اور یہ سلسلہ ہنوز جاری ہے.

उबैद उर रहमान सिद्दीकी भारत के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के साथ
عبید الرحمٰن صدیقی نائب صدر جمہوریہ ہند حامد انصاری کے ساتھ

उबैद उर रहमान सिद्दीकी के परिवार का सम्बंद्ध धरती मक्का से है.आपके पूर्वज सूफी हज़रत शेख अब्दुर रज्जाक मक्की इब्राहिम लोधी के दौर में लाहौर तशरीफ़ लाए और #वहां शेख मीर मौज दरिया जो मशहूर बुजुर्ग थे इनकी शिष्यत्व स्वीकार की.बाद मृत्यु आप पीर मुर्शिद के हुजरा नीला गुंबद लाहौर में दफ़न हुए.आपके बड़े लड़के हज़रत शेख जमाल अहमद मक्की लाहौर से दिल्ली आए और हज़रत शेख मुहम्मद बिन मकन मिस्बाह आशकीन मलानवी के बाद हज़रत शेख अब्दुल कुद्दूस गगोही के मुरीद खास हुए. आप सम्राट हुमायूँ के साथ 1526 में नसीर खान लोहानी के विद्रोह के दमन के लिए आए और ग़ाज़ीपुर मोहम्मदाबाद यूसुफ़पुर में बस गए.उबैद उर रहमान सिद्दीकी के पिता अख्तर उसमान हैं.आपके परिवार का सबसे बड़ा योगदान अली गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बनाने में रहा .सर सय्यद अहमद ख़ां आप पूर्वज मौलवीअब्दुल समद (वकील *,मजिस्ट्रेट) के दोस्तों में से और अली गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए दान देने वालों में से हैं अतिरिक्त जानकारी के लिए सर सय्यद अहमद ख़ां का अखबार इंस्टीट्यूट गजट9/जून/1878 देखिए.आपके परिवार के लोगों ने हिंदुस्तान की स्वतंत्रता में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। अंग्रेजों के अत्याचार और दुर्व्यवहार से दुखी होकर आपके परिवार के खान बहादुर अमीन अल्लाह और खान बहादुर मोलवीअब्दुल समद ने अंग्रेजों के दिए तमगे खान बहादुर को लौटा दिया।
عبیدالرحٰمن صدیقی کے خاندا ن کا تعلق سرزمین مکہ معظمہ سے ہے.آپ کے مورث صوفی حضرت شیخ عبدالرزاق مکیؒ بہ عہد ابراہیم لودی لاہور تشریف لائے اور وہاں شیخ میر موج دریاؒ جو مشہور بزرگ اور عالم دین تھے ان کی شاگردی قبول کی.بعد وصال آپ پیرو مرشد کے حجرہ نیلا گنبد لاہور میں دفن ہوئے.آپ کے بڑے لڑکے حضرت شیخ جمال احمد مکیؒ لاہور سے دہلی آئے اور حضرت شیخ محمد بن مکن مصباح العاشقین ملانویؒ کے بعد حضرت شیخ عبدالقدوس گگوہی کے مرید خاص ہوئے. آپ بادشاہ ہمایوں کے ساتھ 1526میں نصیر خان لوہانی کی بغاوت کی سرکوبی کے لئےآئے اور غازی پور محمدآباد یوسف پور میں بس گئے.عبیدالرحٰمن صاحب کے والد اختر عثمان ہیں.آپ کے اہل خاندان کا سب سے بڑا تعاون علی گڑھ مسلم یونیورسٹی کو بنانے میں رہا .سر سید احمد خاں آپ کےبزرگ مولوی عبدالصمد (وکیل ,مجسٹریٹ) کے دوستوں میں سے اور علی گڑھ مسلم یونیورسٹی کے لئے چندہ دینے والوں میں سے ہیں مزید جانکاری کے لئےسر سید احمد خاں کا اخبار انسی ٹیوٹ گزٹ9/جون/1878دیکھئے.آپ کے خاندان کے لوگوں نے ہندوستان کی جنگ آزادی میں بھی نمایاں کردار ادا کیاہے.انگریزوں کی ظلم اور زیادتی سے متاثرہوکر آپ کے خاندان کےخان بہادر امین اللہ اور. خان بہادرمولوی عبدالصمدصاحب نے انگریزوں کے دئے تمغےخان بہادرکو لوٹا دیا.

उबैद उर रहमान सिद्दीकी ने महज 19-20 साल की उम्र से लेख लिखने प्रारंभ की। पहला निबंध दौरान शिक्षा 1984ई. मैं इंदिरा गाँधी की हत्या पर लिखा था. इस समय से ले कर अब तक इनके लगभग 1500 विषय और अन्वेषणशील लेख अंग्रेज़ी, उर्दू और हिन्दी जबानों मैं प्रकाशित हो चुके हैं।उबैद उर रहमान की व्यक्तित्व और साहित्यिक सेवाएँ पर हिंदुस्तान के विभिन्न टी. वीचैनलों ने डॉक्यूमेंट्री प्रसारण की हैं, जैसे दिल्ली दूरदर्शन उर्दू, ई टी वी उर्दू हैदराबाद, زی सलाम उर्दू, ई टी वी उतर परदेश इत्यादि।उबैद उर रहमान सिद्दीकी ने #भारत के विभिन्न रेडियो स्टेशन से फीचर साहित्यिक निबंध और मौजूद समस्याएँ पर प्रोग्राम कर चुके हैं।
عبید الرحٰمن صدیقی نے محض 19-20 سال کی عمر سے مضون لکھنے کی ابتدا کی۔ پہلا مضمون دوران تعلیم 1984ء میں اندرا گاندھی کے قتل پر لکھا تھا. اس وقت سے لے کر اب تک ان کے تقریبا 1500 مضامین اور تحقیقی مقالے انگریزی، اردو اور ہندی زبانوں میں شائع ہو چکے ہیں۔ عبید الرحٰمن کی شخصیت اور ادبی خدمات پر ہندوستان کے مختلف ٹی. وی.چینلوں نے ڈاکومینڑی نشر کی ہیں، جیسے دہلی دوردرشن اردو، ای ٹی وی اردو حیدرآباد، زی سلام اردو، ای ٹی وی اتر پردیش وغیرہ۔ عبید الرحمن صدیقی نے بھارت کے مخلیف ریڈیو اسٹیشن سے فیچر، ادبی مقالے اور موجودہ مسائل پر پروگرام کرچکے ہیں۔

तज़्किरा मशाईख गाज़ीपुर तज़्किरा मशाईख गाजीपुर गाज़ीपुर का अदबी पसमंज़र गाज़ीपुर बनाम गाधी पूरी एकअवलोकन गाज़ीपुर में गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक और बौद्ध स्थल उबैद उर रहमान सिद्दीकी श्री मुईन अहसन जज़्बी के साथ
تذکرہ مشائخ غازی پور تذکرہ مشائخ غازی پور غازی پور کا ادبی پس منظر غازی پور بنام گادھی پوری ایک اولوکن غازی پور میں گوتم بدھ، سمراٹ اشوک اور بودھ استھل عبید الرحٰمن صدیقی جناب معین احسن جذبی کے ہمراہ

आपकी किताबें हैं। साथ ही उबैद केव्यक्तित्व पर हिंदुस्तान में कई सेमिनार भी आयोजित हो चुके हैं।
آپ کی کتابیں ہیں۔ نیز عبید کی شخصیت پر ہندوستان میں کئی سیمینار بھی منعقد ہو چکے ہیں۔

देश की विभिन्न संस्थाओं ने विभिन्न सम्मान और पुरस्कार से नवाज़ा है जैसे गाज़ीपुर रत्न पुरस्कार, गाज़ीपुर रसखान पुरस्कार, युवा साहित्य पुरस्कार , ग़ालिब पुरस्कार (दिल्ली), अलमयोमल पुरस्कार (अलमयोमल शोध संस्थान लखनऊ), मौलवी रहमतउल्लाह पुरस्कार (मदरसा चश्मे रहमत ) हज़रत आसी पुरस्कार इत्यादि।[1]
ملک کی مختلف تنظیموں نے مختلف اعزازات اور ایوارڈ سے نوازا ہے جیسے غازی پور رتن ایوارڈ، غازی پور کے رس کھان ایوارڈ[1]، یوتھ لیٹریری ایوارڈ (ابوظبی)، غالب ایوارڈ (دہلی)، المئومل ایوارڈ (المئومل شودھ سنستھان لکھنؤ)، مولوی رحمت اللہ ایوارڈ (مدرسہ چشمۂ رحمت) حضرت آسی ایوارڈ وغیرہ۔

उबैद उर रहमान सिद्दीकी की किताब की اجرا करते हुए وزیراعلیٰ बुहार نتیش कुमार
عبید الرحمٰن صدیقی کی کتاب کی اجرا کرتے ہوئے وزیراعلیٰ بہار نتیش کمار

जागरण डॉट कॉम पर खबर जागरण डॉट कॉम पर खबर पूर्वांचल डॉट कॉम खबर गाज़ीपुर बनाम गाधीपूरी एक अवलोकन गाज़ीपुर में गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक और बौद्ध स्थल तज़्किरा मशाईख गाज़ीपुर गाज़ीपुर का अदबी पसमंज़र
جاگرن ڈاٹ کوم پر خبر جاگرن ڈاٹ کوم پر خبر پوروانچل ڈاٹ کوم پر خبر ﻏﺎﺯﯼ ﭘﻮﺭ ﺑﻨﺎﻡ ﮔﺎﺩﮬﯽ ﭘﻮﺭﯼ ﺍﯾﮏ ﺍﻭﻟﻮﮐﻦ کتاب ﺎﺯﯼ ﭘﻮﺭ ﻣﯿﮟ ﮔﻮﺗﻢ ﺑﺪﮪ , ﺳﻤﺮﺍﭦ ﺍﺷﻮﮎ ﺍﻭﺭﺑﻮﺩﮪ ﺍﺳﺘﮭﻞ کتاب تذکرہ مشائخ غازی پور غازی پور کا ادبی پس منظر

बाहरी लिंक
خارجی روابط

बिहार उर्दू यूथ फोरम,उबैद उर रहमान सिद्दीकी की किताब गाज़ीपुर बनाम गाधीपूरी एक अवलोकन का संक्षिप्त जायज़ा 'ग़ाज़ीपुर वाला उबैद उबैद उर रहमान सिद्दीकी की किताब का विमोचन करते ہویے श्रीमान् نتیش कुमार मंत्री आली बुहार उबैद उर रहमान सिद्दीकी की किताब की रस्म اجرا करते ہویے श्रीमान् نتیش कुमार मंत्री आली बुहार
اردو یوتھ فورم بہار پر، عبید الرحمن صدیقی کی کتاب "غازیپور بنام گادھی پوری: ایک جائزہ" کا مختصر جائزہ از تبسم فاطمہ، اردو یوتھ فورم غازی پور والا مکی بلاگ سپاٹ عبید الرحمٰن صدیقی کی کتاب کی رسم اجرا کرتے ہویے جناب نتیش کمار وزیر اعلی بہار عبید الرحمٰن صدیقی کی کتاب کی رسم اجرا کرتے ہویے جناب نتیش کمار وزیر اعلی بہار

गोर-ए-अमीर (Gur-e Amir) (ازبک: Amir Temur maqbarasi*, Go‘ri Amir; फ़ारसी: گور امیر) سمرقند, ازبکستان मैं एशियाई فاتح अमीर तैमुर का मकबरा है।
گور امیر (Gur-e Amir) (ازبک: Amir Temur maqbarasi, Go‘ri Amir; فارسی: گور امیر) سمرقند، ازبکستان میں ایشیائی فاتح امیر تیمور کا مقبرہ ہے

जीवन
حالات زندگی

तलत हुसैन पाकिस्तान‌ टैलीविज़न और रेडियो पाकिस्तान‌ की ड्रामा इंडस्ट्री के मशहूर व्यक्तित्व हैं । उनकी वजह प्रतिष्ठा कला सदाकारी है। उन्होंने रेडियो नाटकों में सदाकारी और अनगिनत वाणिज्यिक / विज्ञापन में भी सदाकारी की।।
طلعت حسین پاکستان ٹیلی وژن اور ریڈیو پاکستان کی ڈراما انڈسٹری کے معروف شخصیت ہیں ۔ ان کی وجہ شہرت فنِ صداکاری ہے۔ انہوں نے ریڈیو ڈراموں میں صداکاری کی اور بے شمار کمرشل /اشتہارات میں بھی صداکاری کی ۔

तलत हुसैन का सम्बंद्ध पढ़े लिखे और रोशन खयाल घराने से था। उनके पिता विभाजन से पहले सरकारी कर्मचारी थे और मां रेडियो पर शौकिया प्रोग्राम किया करती थीं। तलत हुसैन के अलावा उनका एक और भाई भी था। यह परिवार लोग दिल्ली से हिजरत करके पाकिस्तान आए। जब तलत हुसैन की उम्र 3 साल थी तब उनके वालदिी पोस्टिंग रावलपिंडी में हो गई थी। पिंडी भिजवाया और खुद कराची के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे तो पता चला कि पिताजी को कराची में तैनात कर दिया गया था। बाद में उन्हें दमे का रोग पैदा हो गया।ओराओवर डोज़ इंजेक्शन के कारण उनकी एक पैर लकवाग्रस्त हो गई तो वह बिस्तर के होकर रह गए। उन्हीं दिनों कराची रेडियो शुरू हुआ तो उन की मां ने वहां नौकरी कर ली और अंतिम दम तक रेडियो से जुड़े रही।
طلعت حسین کا تعلق پڑھے لکھے اور روشن خیال گھرانے سے تھا ۔ ان کے والد تقسیمِ ہندسے پہلے سرکاری ملازم تھے اور والدہ ریڈیو پر شوقیہ پروگرام کیا کرتی تھیں۔ طلعت حسین کے علاوہ ان کا ایک اور بھائی بھی تھا ۔ یہ خاندان لوگ دہلی سے ہجرت کر کے پاکستان آئے ۔ جب طلعت حسین کی عمر 3 سال تھی تب ان کے والدکی پوسٹنگ راولپنڈی میں ہو گئی تھی ۔ بڑی مشکل سے اپنا سامان بچا کر پنڈی بھجوایااور خودکراچی کے راستے پاکستان پہنچے تو پتہ چلا کہ والد صاحب کو کراچی میں تعینات کر دیا گیا تھا ۔ بعد میں ان کو دمے کا مرض لاحق ہو گیا۔اوراوور ڈوز انجکشن کی وجہ سے ان کی ایک ٹانگ مفلوج ہو گئی تو وہ بستر کے ہو کر رہ گئے۔ انہی دنوں کراچی ریڈیو کا آغاز ہوا توان کی والدہ نے وہاں ملازمت کر لی اور آخری دم تک ریڈیو سے وابستہ رہیں۔

इनकी माता तलत हुसैन के इस फील्ड मैं आने के सख्त खिलाफ़ थीं । इनकी इच्छा थी कह बेटा सिविल सर्विस में जाए। फिर रिश्तेदारों के समझाने पर वह तलत हुसैन को रेडियो लेकर गईं। इन का ऑडिशन करवाया.ास युग में बच्चों के लिए एक कार्यक्रम हुआ करता था। '' स्कूल प्रसारण '' जो शैक्षिक पाठ्यक्रम पर आधारित नाटकीय फीचर हुआ करते थे। तो्लित हुसैन ने मां से आग्रह किया कि इस कार्यक्रम से मुझे शिक्षा में बहुत लाभ होगा। इस तरह रेडियो पर काम शुरू किया। दाद मिलती गई, लोग पसंद करने लगे। फिर उन्होंने स्टूडियो 9 में काम शुरू कर दिया और उनकी मां प्रयास के बावजूद उन्हें रोक नहीं सकी और वह काम करते रहे।[1]
ان کی والدہ طلعت حسین کے اس فیلڈ میں آنے کے سخت خلاف تھیں ۔ ان کی خواہش تھی کہ بیٹا سول سروس میں جائے ۔ پھر رشتے داروں کے سمجھانے پر وہ طلعت حسین کو ریڈیو لے کر گئیں ۔ان کا آڈیشن کروایا۔اس زمانے میں بچوں کے لئے ایک پروگرام ہوا کرتا تھا۔’’سکول براڈ کاسٹ ‘‘جس میں تعلیمی نصاب پر مبنی ڈرامائی فیچر ہوا کرتے تھے توطلعت حسین نے والدہ سے اصرار کیا کہ یہ پروگرام کرنے سے مجھے تعلیم میں بہت فائدہ ہو گا۔ اس طرح ریڈیو پر کام شروع کیا۔داد ملتی گئی، لوگ پسند کرنے لگے۔پھرانہوں نے سٹوڈیو 9 میں کام شروع کر دیااور ان کی والدہ کوشش کے با وجودان کو روک نہیں سکیں اور وہ کام کرتے رہے ۔ .[1]

1972ई. मैं इनकी शादी प्रोफेसर रख्शंदा से हुई। इनके दो बेटियाँ और एक बेटा हुए। इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएशन की। फिर लंदन जाकर थिएटर आर्ट्स लंदन अकादमी संगीत और ड्रामैटिक कला से प्रशिक्षण प्राप्त किया और स्वर्ण पदक हासिल किया।
1972ء میں ان کی شادی پروفیسر رخشندہ سے ہوئی ۔ ان کے دو بیٹیاں اور ایک بیٹا ہوئے ۔ انگلش لٹریچر میں گریجو ایشن کیا ۔ پھر لندن جا کر تھیٹر آرٹس میں لندن اکیڈمی آف میوزک اینڈ ڈرامیٹک آرٹ سے ٹریننگ حاصل کی اور گولڈ میڈل حاصل کیا۔

करियर की शुरूआत सिनेमा में गेट कीपर के रूप में किया। बाद में जब सिनेमा के मालिक को उनके अंग्रेजी बोलने की योग्यता का ज्ञान हुआ तो उसने उन्हें गेट बुकिंग क्लर्क बना दिया, यह उनके जीवन की पहली तरक्की थी।[2]
کیرئر کا آغاز سینما میں گیٹ کیپر کے طور پر کیا ۔بعدمیں جب سینما کے مالک کو ان کے انگریزی بولنے کی قابلیت کا علم ہوا تو اس نے انہیں گیٹ بکنگ کلرک بنا دیا ، یہ ان کی زندگی کی پہلی ترقی تھی ۔ .[2]

उन्होंने एक्टिंग की शिक्षा लंदन में प्राप्त की। बचपन में उन्हें गायकी, चित्रकारी और क्रिकेट का शौक था।[2]
انہوں نے ایکٹنگ کی تعلیم لندن میں حاصل کی ۔ بچپن میں انہیں گائیکی‘ مصوری اور کرکٹ کا شوق تھا ۔.[2]

रचनाएँ
تصانیف

उर्दू कहानी संग्रह
اردو افسانہ

हिन्दी कहानी संग्रह
ہندی افسانہ

बलवंत सिंह हिन्दी: हिन्दी: बलवंत सिंह (जन्म:जून 1921ई. - 27 मई 1986ई.) बीसवीं सदी की उर्दू और हिन्दी के मशहूर नाटककार, उपन्यासकार और गल्पकार और पत्रकार हैं जिन्होंने जगा, पहला पत्थर, तारोपुद, हिंदुस्तान हमारा जैसे कहानी संग्रह और कॉल कोस, रात, चोर और चाँद, चक पीरान का जस्सा जैसे लजवाल उपन्यास सृजन किए और अपनी रचनात्मक गुणों से उर्दू गल्प को विश्वीय पहचान देने मैं #अहम भूमिका अदा की।
بلونت سنگھ ہندی: बलवंत सिंह (پیدائش:جون 1921ء - 27 مئی 1986ء) بیسویں صدی کے اردو اور ہندی کے مشہور و معروف ڈراما نویس، ناول و افسانہ نگار اور صحافی ہیں جنھوں نے جگا، پہلا پتھر، تاروپود، ہندوستان ہمارا جیسے افسانوی مجموعے اور کالے کوس، رات، چور اور چاند، چک پیراں کا جسا جیسے لازوال ناول تخلیق کیے اور اپنی تخلیقی صلاحیتوں سے اردو افسانے کو عالمی شناخت دینے میں اہم کردار ادا کیا۔

जगा पहला पत्थर हिंदुस्तान हमारा सुनहरा देश तारो पोद बलवंत सिंह के अफ़साने आबगीना (नया अफ़सानवी मजमूआ तर्तीब-ओ-तहक़ीक़ डाक्टर जमील अख़तर आबगीना (नया अफ़सानवी मजमूआ तर्तीब-ओ-तहक़ीक़ डाक्टर जमील अख़तर
جگا پہلا پتھر ہندوستان ہمارا سنہرا دیس تاروپود بلونت سنگھ کے افسانے آبگینہ (نیا افسانوی مجموعہ, ترتیب و تحقیق: ڈاکٹر جمیل اختر)

पंजाब की कहानियाँ चिलमन पहला पत्थर मेरी پریہ कहानियाँ देवता का जहन्नुम प्रति निधि कहानियां बन-बास तथा अन्य कहानियां अली अली मेरी तेंतीस कहानियां मैं ज़रूर रोऊँगी
پنجاب کی کہانیاں چلمن پہلا پتھر میری پریہ کہانیاں دیوتا کا جہنم پرتی ندھی کہانیاں بن باس تتھا انیہ کہانیاں ایلی ایلی میری تینتیس کہانیاں میں ضرور روؤں گی

चक पीरां का जस्सा रात, चोर और चांग काले कोस
چک پیراں کا جسا رات، چور اور چانگ کالے کوس

रावी ब्यास साहब-ए-आलम सोना आसमान दवाकल गढ़ आग की कलियाँ बासी फूल फिर सुबह होगी राका की मंज़िल
راوی بیاس صاحبِ عالم سونا آسمان دواکل گڑھ آگ کی کلیاں باسی پھول پھر صبح ہوگی راکا کی منزل

बलवंत सिंह (लेखक)
بلونت سنگھ

सैयद सालार मसूद गाजी अलैहिर्रहमा के नाम के कारण कौन है जो बहराइच के नाम से परिचित नहीं.तारीख के हरदोर में बहराइच का उल्लेख मिलता है। बुद्ध के ज़माने के आसार गवाही आज भी जिले के कुछ खंडहर से मिलती है। भारत में मुसलमानों के आगमन और सुल्तान महमूद गज़नवी के हमलों के बाद बहराइच नाम इतिहास के पन्नों सजाना बनता है। सैयद सालार मसूद गाजी अपनी सैन्य शक्ति के साथ उत्तर भारत की राजनीतिक शक्तियों से मोर्चा लेते बहराइच तक आकर घर जाते हैं। यहाँ राष्ट्र भिड़ के राजाओं ने एकजुट होकर उनसे युद्ध और 424 आह अनुसार 1033 में 14 /माह रजब दिन ीकशनबह आप यहाँ शहीद हो गए। आपकी मज़ार भी बाद यहाँ बना और मैला भी लगता है। इसी काल से बहराइच की प्रतिष्ठा बराबर स्थापित है। मोहम्मद शाह तुगलक और फिरोजशाह तुगलक दोनों अपने मज़ार पर हाज़िरी ए.आर. देने आए। फिरोजशाह तुगलक के आगमन के अवसर पर सैयद अमीर महीने नामक बुजुर्ग नाम आता है, वह उन्हीं बुजुर्ग मझयत सैयद सालार्मसावद ग़ाज़ी के मज़ार पर हाज़िरी दी थी। सैयद अमीर महीने आध्यात्मिक प्रभाव से प्रभावित हुआ था, और उसकी जीवन में कुछ परिवर्तन हुई थीं, फिरोजशाह आगमन और सैयद अमीर महीने साहब की बैठक के बारे में तारीख फिरोज शाही शहादत है कि: '' पाली साहचर्य नेक दगरम निर्यात '' पुस्तकों के देखने से पता चलता है कि सैयद अमीर महीने के समय में आप सबने श्रद्धांजलि दी है, उस दौर जीतने सूफी संत हैं सबने किसी न किसी तरीके से आप उल्लेख किया है, और उनके बाड़ों में आप नाम नामक मौजूद है। (1) अपना पूरा नाम सैयद अफजल दीन अबू जफर अमीर महीने 1 ؂ बहराइच है, फिरोज शाही नियम 752 एच 1351 ई। ता 790 एच 1388 ई प्रसिद्ध बुजुर्ग हैं। तारीख फिरोज शाही में आपका उल्लेख है। (2) हज़रत शेख शरफ़ुद्दीन यहया मुनीर (मृतक 782 हिजरी) बिहार के प्रसिद्ध सूफी संत के बाड़ों में भी अपने संक्षिप्त उल्लेख है। (3) हज़रत सैयद अशरफ जहांगीर समनानी (मृतक 808 हिजरी) के बाड़ों चुटकुले मोहर आदि में जो उनके मुरीद ोरिएफह शेख निजामुद्दीन गरीब येमेनी एकत्र किया है, आप का उल्लेख इन शब्दों में: '' से सादात बहराइच सैयद ाबोजिफर अमीर महीने रॉ बेशर्मी बोदम 'बहराइच के सादात से सैयद अबू जफर अमीर महीने मैंने देखा है। (4) हज़रत अमीर सैयद अली हमदानी (मृतक 787 हिजरी) कश्मीर पहले सूफी और साहब लिखी और सबसे बुजुर्ग हैं। अपनी पुस्तक उत्कृष्ट मतालिब में भारत के इन बारह सही ालनसब परिवारों का हाल लिखा है जो विलायत से भारत आए, उनमें भी सैयद अमीर माह नाम नामक है। (5) तिथि दूत ने फिरोजशाह यात्रा बहराइच के उल्लेख में अमीर महीने का उल्लेख किया है, फिरोजशाह अपनी बुजुर्ग प्रभावित होकर अपने ही साथ सैयद सालार मसूद गाजी के मज़ार पर हाज़िरी हुआ था। रास्ते में सैयद साहब से हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी की बुज़ुर्ग क्रामात घटनाओं पूछने लगा। आपने फ़रमाया कि '' यही करामत क्या कम है कि आप ऐसा राजा मीराएसा फकीर दोनों उनकी द्वारपाल कर रहे हैं '' इस जवाब पर राजा जिसके दिल में प्रेम की चाशनी थी बहुत मनोरंजन हुआ। (6) तिथि फिरोज शाही के संबंध में प्रोफेसर रिएक अहमद प्रणाली (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) अपनी पुस्तक '' किंग्स दिल्ली धार्मिक रुझान '' में लिखते हैं कह''मीर सैयद अमीर महीने बहराइच प्रसिद्ध ोमिरोफ मशाईख तरीक़त थे। सैयद अलाउद्दीन उर्फ ​​ब अली जावरी से बैअत थी.ोहदत वजूद विभिन्न मुद्दों पर पत्रिका ालम्लोब प्रति ालिशक ालमहबोब लिखा था फिरोजशाह जब बहराइच गया था तो उन की सेवा में भी हाज़िर हुआ और '' पाली साहचर्य नेक दगरम निर्यात ''। फिरोजशाह मन में मंदिर (हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी) से संबंधित कुछ संदेह भी थे, जिन्हें सैयद अमीर महीने ने रफा किया। अब्दुर्रहमान चिश्ती (लेखक मिरातुल असरार) का बयान है कि इस मुलाकात के बाद फिरोजशाह दिल दुनिया से ठंड पड़ गया था, और उसने बाकी उम्र याद इलाही में कटौती दी.या बयान अतिरंजित ज़रूर है, लेकिन गलत नहीं, बहराइच के यात्रा के बाद फिरोज धर्म कागलबह हो गया था। (7) लेखक दर्पण अवध ने हज़रत सैयद अहमद वालिद मौलाना सुास्थी उल्लेख के संबंध में हज़रत सैयद अली हमदानी की दूसरी किताब स्रोत ालांसाब यह पाठ नकल है कह''हज़रत मीर सैयद मखदूम मौलाना सुास्थी साहब कि कब्र ओ दर कटरह विसर्जन पाली बुजुर्ग और साहब पूर्णता से खुल्फाए मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु हज़रत अबू जफर अमीर महीने बहराइच ोहज़रत मख़दूम सूचीबद्ध हम ताश ख्वाजा बोदनद.ाें हर दो बुज़ुर्गों ोरिएफह सही हज़रत मीर सैयद अलाउद्दीन जयपुरी इंदु '' मीर सैयद अलाउद्दीन को लेखक प्रशांत ालांसाब हज़रत सैयद अली हमदानी ने इमाम आलम, आलम दीनदार ध्रुव ालसादात प्रति ोकतह, शिक्षक ालारादात और सैयद ालसादात एस शब्दों से याद किया है, आप श्रृंखला सहरोरदया प्रसिद्ध नेता हैं। लेखक मरأۃालासरार मौलवी अब्दुल रहमान चिश्ती ने जो हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी की आत्मा फ़्तोह से लाभान्वित हुए थे और समय तक बहराइच में स्थित रहे थे इसी भक्ति में मरأۃ मसूदी लिखी है, मरأۃ कक्षीय भी अपनी लिखी है, मिरातुल असरार में मकतोबात हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर कछोछोी के हवाले से लिखते हैं: '' मीर सैयद अशरफ जहा नगीर समनानी अपने एक पत्र 32 में (जो सादात बहराइच का उल्लेख है) लिखते हैं '' सादात ख्हٔ बहराइच के वंश बहुत प्रसिद्ध है, सादात बहराइच में सैयद अबू जाफ़र अमीर महीने मैंने देखा है, घाटी असमानता में बेनजीर थे, सैयद शहीद मसूद गाजी के मजार उपस्थिति मोक अ पर और सैयद अबू जफर अमीर महीने और हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम साथ थे उनकी मशीखत अक्सर स्थिति के लिए मैं हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम की आत्मा को भुनाया है, सैयद अमीर महीने का मज़ार तीर्थ स्थल सृष्टि है ''। मिरातुल असरार के बीसवें सेगमेंट में मीर सैयद अलाउद्दीन कनतवरी शर्तों के बाद हज़रत सैयद अमीर महीने रहमतुल्लाह अलैह के नाम िलीहद राजा शीर्षक स्थापित करके विस्तार परिस्थितियों लिखे हैं: '' आरिफ पेशवाये विश्वास '', '' मकतदाए समय ' '' 'कामलान रोजगार' 'बुज़ुर्गों साहब रहस्य' के ालकाब से चर्चा
سید سالار مسعود غازی علیہ الرحمہ کے نام نامی کی وجہ سے کون ہے جو بہرائچ کے نام سے واقف نہیں۔تاریخ کے ہردور میں بہرائچ کا تذکرہ ملتا ہے۔ مہاتما بدھ کے زمانہ کے آثار کی گواہی آج بھی ضلع کے کچھ کھنڈر سے ملتی ہے۔ ہندوستان میں مسلمانوں کی آمد اور سلطان محمود غزنوی کے حملوں کے بعد بہرائچ کا نام تاریخ کے اوراق کی زینت بنتا ہے۔ سید سالار مسعود غازی ؒ اپنی فوجی طاقت کے ساتھ شمالی ہندوستان کی سیاسی طاقتوں سے مورچہ لیتے بہرائچ تک آکر گھر جاتے ہیں۔ یہاں قوم بھڑ کے راجاؤں نے متحد ہو کر ان سے جنگ کی اور 424 ھ مطابق 1033ء میں ۱۴ ؍ماہ رجب روز یکشنبہ کو آپ یہاں شہید ہوگئے۔ آپ کا مزار بھی بعد کو یہاں بنا اور میلا بھی لگتا ہے۔ اسی زمانے سے بہرائچ کی شہرت برابر قائم ہے۔ محمد شاہ تغلق اور فیروز شاہ تغلق دونوں آپ کے مزار پر حاضر ی دینے آئے۔ فیروز شاہ تغلق کی آمد کے موقع پر سید امیر ماہ نامی بزرگ کا نام آتاہے ،اس نے ان ہی بزرگ کی معیت میں سید سالارمسعود غازیؒ کے مزار پر حاضری دی تھی۔ سید امیر ماہؒ کے روحانی اثرات سے متاثر ہوا تھا ، اور اسکی زندگی میں بعض تبدیلیاں ہوئی تھیں ، فیروز شاہ کی آمد اور سید امیر ماہ صاحبؒ کی ملاقات کے متعلق تاریخ فیروز شاہی کی شہادت ہے کہ: ’’بسیار صحبت نیک دگرم برآمد‘‘ کتابوں کے دیکھنے سے پتہ چلتا ہے کہ سید امیر ماہؒ کے زمانے میں آپ کو سب نے خراج عقیدت پیش کیا ہے ، اس دور کے جیتنے صوفی بزرگ ہیں سب نے کسی نہ کسی انداز میں آپ کا تذکرہ کیا ہے ، اور ان کے ملفوظات میں آپ کا نام نامی موجود ہے۔ (1) آپ کا پورا نام سید افضل الدین ابو جعفر امیرؒ ماہ ۱ ؂ بہرائچی ہے،فیروز شاہی عہد 752ھ 1351ء تا 790 ھ 1388ء کے مشہور بزرگ ہیں۔ تاریخ فیروز شاہی میں آپ کا تذکرہ ہے۔ (2) حضرت شیخ شرف الدین یحیی منیریؒ (متوفی 782ھ) بہار کے مشہور صوفی بزرگ کے ملفوظات میں بھی آپ کا مختصر ذکر ہے۔ (3) حضرت سید اشرف جہانگیر سمنانیؒ (متوفی 808ھ )کے ملفوظات لطائف اشرفی وغیرہ میں جس کو ان کے مرید وخلیفہ شیخ نظام الدین غریب یمنی نے جمع کیاہے،آپ کا ذکر ان الفاظ میں ہے : ’’از سادات بہرائچ سید ابوجعفر امیر ماہ را دیدہ بودم ‘‘ بہرائچ کے سادات میں سے سید ابو جعفر امیر ماہ کو میں نے دیکھا ہے۔ (4) حضرت امیر سید علی ہمدانی (متوفی 787ھ) کشمیرکے سب سے پہلے صوفی اور صاحب تصنیف اور مشہور بزرگ ہیں۔ اپنی کتاب عمدۃ المطالب میں ہندوستان کے اُن بارہ صحیح النسب خاندانوں کا حال لکھا ہے جو ولایت سے ہندوستان آئے ، ان میں بھی سید امیر ماہؒ کا نام نامی ہے ۔ (5) تاریخ فرشتہ نے فیروز شاہ کے سفر بہرائچ کے تذکرہ میں امیر ماہؒ کا تذکرہ کیا ہے ، فیروز شاہ آپ کی بزرگی سے متاثر ہو کر آپ ہی کے ساتھ سید سالار مسعود غازیؒ کے مزار پر حاضر ہواتھا۔ راستہ میں سید صاحب سے حضرت سید سالار مسعود غازیؒ کی بزرگی وکرامات کے واقعات پوچھنے لگا۔ آپ نے فرمایا کہ’’ یہی کرامت کیا کم ہے کہ آپ کا ایسا بادشاہ اور میراایسا فقیر دونوں ان کی دربانی کر رہے ہیں ‘‘اس جواب پر بادشاہ جس کے دل میں عشق کی چاشنی تھی بہت محظوظ ہوا۔ (6) تاریخ فیروز شاہی کے سلسلے میں پروفیسر خلیق احمد نظامی (علی گڑھ مسلم یونیورسٹی) اپنی کتاب ’’سلاطین دہلی کے مذہبی رجحانات‘‘ میں لکھتے ہیں کہ’’میر سید امیر ماہ بہرائچ کے مشہور ومعروف مشائخ طریقت میں تھے۔ سید علاء الدین المعروف بہ علی جاوری سے بیعت تھی۔وحدت الوجود کے مختلف مسائل پر رسالہ المطلوب فی العشق المحبوب لکھا تھا فیروز شاہ جب بہرائچ گیا تھا توان کی خدمت میں بھی حاضر ہوا اور ’’بسیار صحبت نیک دگرم برآمد‘‘۔فیروز شاہ کے ذہن میں مزار (حضرت سید سالار مسعود غازیؒ ) سے متعلق کچھ شبہات بھی تھے ،جن کو سید امیر ماہ نے رفع کیا ۔ عبد الرحمن چشتی (مصنف مرأۃ الاسرار) کا بیان ہے کہ اس ملاقات کے بعد فیروز شاہ کا دل دنیا کی طرف سے سرد پڑگیا تھا، اور اس نے باقی عمر یاد الٰہی میں کاٹ دی۔یہ بیان مبالغہ آمیز ضرور ہے، لیکن غلط نہیں ،بہرائچ کے سفر کے بعد فیروز پر مذہب کاغلبہ ہو گیا تھا ۔ (7) مصنف آئینہ اودھ نے حضرت سید احمد والد ماجد مولانا خواجگی ؒ کے ذکر کے سلسلے میں حضرت سید علی ہمدانی کی دوسری کتاب منبع الانساب سے یہ عبارت نقل کی ہے کہ’’حضرت میر سید مخدوم مولانا خواجگی صاحب کہ قبر او در کٹرہ است بسیار بزرگ و صاحب کمال از خلفائے میر سید علاء الدین جے پوری اند حضرت ابو جعفر امیر ماہ بہرائچی وحضرت مخدوم مذکور ہم تاش خواجہ بودند۔ایں ہر دو بزرگان وخلیفہ کامل حضرت میر سید علاء الدین جے پوری اند‘‘ میر سید علاء الدینؒ کو مصنف بحر الانساب حضرت سید علی ہمدانی نے امام عالم ، عالِم متدین قطب السادات فی وقتہٖ ، استاذ الارادات اور سید السادات کے الفاظ سے یاد کیا ہے، آپ سلسلہ سہروردیہ کے مشہور رہنما ہیں۔ مصنف مرأۃالاسرار مولوی عبد الرحمن چشتی نے جو حضرت سید سالار مسعود غازیؒ کی روح پر فتوح سے فیضیاب ہوئے تھے اور عرصے تک بہرائچ میں مقیم رہے تھے اسی عقیدت میں مرأۃ مسعودی لکھی ہے،مرأۃ مداری بھی آپ کی تصنیف ہے ، مرأۃ الاسرار میں مکتوبات حضرت مخدوم اشرف جہانگیر کچھوچھویؒ کے حوالہ سے لکھتے ہیں: ’’میر سید اشرف جہا نگیر سمنانی اپنے ایک مکتوب 32 میں (جس میں سادات بہرائچ کا تذکرہ ہے) لکھتے ہیں ’’سادات خطۂ بہرائچ کا نسب بہت مشہور ہے ،سادات بہرائچ میں سید ابو جعفر امیر ماہ کو میں نے دیکھا ہے ،وادی تفاوت میں بے نظیر تھے، سید شہید مسعود غازی کے مزار کی حاضری کے موقع پر میں اور سید ابو جعفر امیر ماہ اور حضرت خضر علیہ السلام ساتھ ساتھ تھے ان کی مشیخت کے اکثر حالات کے لئے میں نے حضرت خضر علیہ السلام کی روح سے استفادہ کیا ہے، سید امیر ماہ کا مزار زیارت گاہ خلق ہے‘‘۔ مرأۃ الاسرار کے بیسویں طبقہ میں میر سید علاء الدین کنتوری کے حالات کے بعد حضرت سید امیر ماہ رحمۃ اللہ علیہ کے نام کی علیٰحد ہ سرخی قائم کر کے تفصیل سے حالات لکھے ہیں: ’’عارف پیشوائے یقین‘‘ ، ’’مقتدائے وقت‘‘، ’’کاملان روزگار‘‘ ، بزرگانِ صاحب اسرار‘‘ کے القاب سے تذکرہ شروع کیا ہے۔ لکھتے ہیں : ’’شانے عظیم وکراماتے وافر وحالے قوی وہمتے بلند داشت ‘‘ ’’صاحب عالی مقام بود ،عالمے از نعمت او فیض مند گشت‘‘ آپ کا زمانہ حضرت نصیر الدین محمود ؒ ’’چراغ دہلی‘‘ (متوفی 757ھ )کے زمانے سے لیکر حضرت میر سید اشرف جہانگیر ؒ (متوفی 808ھ )تک ہے۔ خزینۃ الاصفیاء کے مصنف مفتی غلام سرور لاہوری نے بھی معارج الولایت کے حوالے سے حالات لکھتے ہیں۔ تاریخ آئینہ اودھ کے مصنف مولانا شاہ ابوالحسن قطبی والحسامی مانکپوری نے افسران کمشنری کے ساتھ اپنی ملازمت کے دوران سفر کیا ،خود1875ء میں بہرائچ آئے اور یہاں کے لوگوں سے مل کر تحقیقات کر کے ایک پورے باب میں اس کی تفصیلات لکھی ہیں۔اس کو ہم نقل کرتے ہیں ۔

'' हलाकू खान के हमला बगदाद से परेशान होकर 657 हिजरी अनुसार 1258 में सैयद हसाम दीन जद सैयद अफजल दीन अबू जफर अमीरमाह ने बहराइच बगदाद शरीफ से निर्वासित होकर ग़ज़नी लाहौर आए, बाद में लाहौर से दिल्ली आए, तब दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन था, उसने वज़ीफ़ा कर दिया, 743 हिजरी में जब मोहम्मद शाह तुगलक ने दिल्ली को वीरान कर देव गढ़ दौलताबादी डेक्कन लाया चाहा तब सैयद निजामुद्दीन वालिद हज़रत वहाँ न गए और 744 हिजरी में अवध क्षेत्र में शहर बहराइच पसंद फरमाया और तरह निवास डाला। 754 हिजरी अनुसार 1353 में जब फिरोजशाह तुगलक यात्रा बंगाल से बहराइच आया तो सैयद अफजल दीन अबू जफर अमीरमाह से प्रभावित होकर कुछ गांवों को खानकाह को दिए , उनके बेटे सैयद ताजुद्दीन उनके सैयद मसूद उनके सैयद अहमद अल्लाह , उनके सैयद महमूद, उनके सैयद मुबारक, उनके सैयद नासिर दीन, उनके सैयद निजामुद्दीन, उनके सैयद रुकन उद्दीन, उनके सैयद अली दीन, उनके सैयद गुलाम हुसैन, 'उनके पुत्र गुलाम रसूल, तब तक, सभी लोग सुन्नत मोहम्मदी मानने वाले थे सुन्नत मोहम्मदी के हिसाब से व्यवहार और उर्स करते रहे, जब उनके पुत्र सईद गुलाम हुसैन द्वितीय थे,उन्हें वैसा अनुग्रह कमाल प्राप्त न था,वह तरीका रशदो इरशाद संशोधित हो गया, उनके दो बेटे ग़ुलाम मोहम्मद और ग़ुलाम रसूल ये समकालीन थे, नवाब शुजा-उद-दौला बहादुर के, सुलह बक्सर के बाद जब सुलह पत्र अंग्रेज़ी सरकार से हुआ तो नवाब ममदोह ज़िक्र के आदेश जब्ती कल माफयात अवध जारी किया, यह दोनों भाई रखरखाव माफयात के धर्मांतरण कर धर्म इमामिया अपना लिया, इतना लाभ धर्मांतरण से हुआ कि इसके बजाय आधे माफी बहाल कर दी गई है और इसके बजाय मनोबल अभ्यास करने के बजाय आधा समाप्त हो गया है।तब से बजाय उर्स के ताजिया रखने लगे। "
’’ہلاکو خاں کے ہنگامۂ بغداد سے پریشان ہو کر 657ھ مطابق 1258ء میں سید حسام الدین جد سید افضل الدین ابو جعفر امیر ماہ بہرائچی بغداد شریف سے جلا وطن ہو کر براہ غزنی لاہور آئے ، بعد قیام چند ے لاہور سے دہلی آئے ، اس وقت بادشاہ دہلی سلطان غیاث الدین بلبن تھا، اس نے آناآپ کا باعث یُمن سمجھ کر وظیفہ مقرر کردیا ،743ھ میں جب محمد شاہ تغلق نے دہلی کو ویران کر کے دیو گڑھ دولت آباد دکن لیجانا چاہا اس وقت سید نظام الدین والد ماجد حضرت کے وہاں نہ گئے ور جانب اودھ متو جہ ہوئے 744ھ میں سواد مقام بہرائچ پسند مزاج ہوا، اور طرح اقامت ڈالی۔ 754ھ مطابق 1353ء میں جب فیروز شاہ تغلق سفر بنگالہ سے وارد بہرائچ ہوا تو سید افضل الدین ابو جعفر امیر ماہ کا معتقد ہو کر چنددیہات واسطے صرف خانقاہ کے عطا ومعاف کئے، ان کے بیٹے سید تاج الدین ان کے سید مسعود ان کے سید احمد اللہ ،ان کے سید محمود ،ان کے سید مبارک ، ان کے سید ناصر الدین ، انکے سید نظام الدین ،ان کے سید رکن الدین ، ان کے سید علی الدین ، انکے سید غلام حسین ، ان کے سید غلام رسول ، اس وقت تک سب لوگ محی سنت آبائی کے رہ کر طریقۂ رشد وارشاد جاری رکھتے تھے۔اور اہتمام اعراس کا کرتے رہے ، جب ان کے بیٹے سید غلام حسین ثانی ہوئے ، ان کو ویسا فضل وکمال حاصل نہ تھا ، وہ طریقہ آبائی رشدو ارشاد ضعیف ہوگیا ، ان کے دو پسر غلام محمد وغلام رسول ثانی ۔ یہ معاصر تھے، نواب شجاع الدولہ بہادر کے ، بعد صلح بکسر ۱ ؂ کے جب صلح نامہ گورنمنٹ انگلشیہ سے ہوا تونواب ممدوح الذکر نے حکم ضبطی کل معافیات صوبۂ اودھ کا صادر کیا ، یہ دونوں بھائی بطمع بحالی معافی بہ تبدیل مذہب آبائی پابند مذہب امامیہ ہوگئے ، اس قدر فائدہ تبدیل مذہب سے ہوا کہ نصف معافی بحال اور نصف ضبط ہوگئی ،اس وقت سے بجائے اعراس کے تعزیہ داری کرنے لگے‘‘۔

परिवार वंशावली के बाद सैयद साहब के आध्यात्मिक वंशावली सोहरवर्दी सिलसिला था पच्चीस वास्तो से हज़रत अली तक इस तरह है, सैयद अफजल दीन अबू जफर अमीरमाह बहराइच। यह मुरीद और ख़लीफ़ा हज़रत अलाउद्दीन जयपुरी और वह हज़रत कवाम दीन और वह अपने पिता अमीर कबीर सैयद कुतुबुद्दीन मोहम्मद मदनी और वह सैय्यद नजमुद्दीन कुबरा और वह हज़रत अम्मार यासिर और वह हज़रत अबु नजीब सोहरावर्दी और वह शेख अहमद गजाली और वह हज़रत अबु बुकर नसाज और वह अबू क़ासिम गुरगनी और वह हज़रत अबु उस्मान पश्चिमी और वह अबू अली कातिब और वह हज़रत अली चैनल और वे हज़रत अबुल क़ासिम कशीरिय और वह अबू अली दकाक और वह हज़रत अबुल क़ासिम नसीरआबादी और वह हज़रत अबु बकर शिबली और वह हज़रत जुनैद बगदादी और वे हज़रत श्री सकटिय और वह हज़रत प्रसिद्ध करी और वह हज़रत अली मूसा रजा और वह हज़रत मूसा काज़िम ओ वह हज़रत इमाम जाफ़र उमा सादिक और वह हज़रत इमाम बाक़िर और वह हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन और वह हज़रत इमाम हुसैन और वह हज़रत अली करम अल्लाह वजह थे। श्रृंखला ांसाब पदरी है। सैयद अबू जफर अमीर महीने बहराइच बिन सैयद निजामुद्दीन बिन सैयद हसाम दीन बन सैयद फ़ख़रुद्दीन बिन सईद याह्या बिन सैयद अबू तालिब बन सैयद महमूद बन सैयद हमजा बिन सैयद हसन बिन सैयद अब्बास बिन सैयद मोहम्मद बिन सैयद अली बिन सैयद अबू मोहम्मद इस्माइल बिन हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ ताकि हज़रत अली। (1) मिरातुल असरार के लेखक सैयद अहमद महीने से खुद मिले थे, वे लिखते हैं:। ''मीर सय्यद अहमद जहांगीर के शासनकाल में मैं बार-बार, अच्छे व्यक्ति को देख रहा था। ''((अनुवाद फारसी)) (2) बहराइच के एक पुराने सम्मानित परिवार के व्यक्ति डॉक्टर खतीब साहब की स्वामित्व तारीख आईना अवध के हाशिये पर एक इबारत लिखी हुई है, यह लेख मौलवी हकीम मोहम्मद फारुख साहब का है जिन्होंने 29 / शव्वाल 1365 हिजरी (26 सितम्बर 1946 ई।) दिन गुरुवार में निधन हुआ अपने समय के ज्ञानवान इकाई थे। तारीख दर्पण अवध के सफ़ा 155 पर मीर महीने साहब की स्थिति में परिवार के एक बुजुर्ग मौलवी अली दीन साहब का उल्लेख आया है, उनके नाम पर मौलवी मुहम्मद फारूक साहब ने नीचे का मार्जिन लिखा है। '' यह हजरत मौलाना शाह नईम अल्लाह साहब (मृतक 1218 हिजरी) के मुरीद थे और हज़रत अभिव्यक्ति जानजानाँ बहुत श्रद्धा रखते थे, उन्हीं की फरमाइश से बशारात मठहरया हज़रत ने लिखी है, उसमें उनका ज़िक्र मोहम्मद महीने के नाम से है, कई शाही का गज़ात मैंने जब मोहम्मद महीने साहब मुहर देखी तो हज़रत नाना साहब से पूछा, उन्होंने जवाब दिया कि यह परिवार मेरे महीने, सज्जादा मोहम्मद महीने नामक होता था और शहर भर में जब तक न्याय की मुहर के साथ उनकी मुहर न होती थी वह कागज विश्वसनीय नहीं माना जाता था.ाोर यह भी सुना है कि उनके परिवार के शिया जाने से विद्वानों में बड़ा रोमांचक जन्मे, इससे साहब 1 ؂ ज़ालۃ ालगीन क विधी संबंधित थे, उन्होंने समस्या ालगीन लिखी, इस परिवार के कई लोग अवध में थे। सैयद उन्मुख हुसैन साहब महीने दावा नगरोरवी ने (जो इस परिवार के विश्वसनीय और ज्ञानवान व्यक्ति हैं) जो शजरे हम देखने को इनायत करे, उनसे पता चलता है कि इस परिवार की अच्छी खासी आबादी अवध (अयोध्या) जिला फैजाबाद में अभी भी है और श्रृंखला मनाकहत बराबर स्थापित है, ताज महीने परिवार प्रसिद्ध है। मिर्जा खदादादबीग ाकसटरा सहायक आयुक्त बहराइच अपनी पुस्तक 'तरनम खदादाददर उल्लेख मसूद' '(मुद्रित 1888 ई।) के पी 23 मीर महीने साहब के उल्लेख में लिखते हैं कि हज़रत भाई सैयद अलाउद्दीन विशेषज्ञ और चालू अवधी अयोध्या स्थित रहे और वहाँ के साहब विलायत हुए। लेखक दर्पण अवध लिखते हैं '' शुद्धि वंश में उन कुछ संदेह नहीं ोसलत और मसाहरत उनकी साथ सादात जरोल है। शाह तक़ी हैदर कलनदरका कक्रवी अपनी पुस्तक चर्चा ालाबरार में पी 115 लिखते हैं कि मेरे महीने साहब के परिवार की एक पुत्री हजरत शाह मजा क़लंदर लाहरिपोरी परिवार में हज़रत अब्दुल ालरहमंजानबाज़ कलंदर को जिम्मेदार ठहराया था, उनकी दूसरी पत्नी थी, हज़रत अब्दुल रहमान जांबाज़ कलंदर ने 976 ؁ख में विसाल कहा।
خاندانی شجرہ کے بعد سید صاحب کے روحانی شجرہ کو جو سہروردیہ تھا پچیس واسطوں سے حضرت علیؓ تک اس طرح لکھا ہے۔ ذکر سید افضل الدین ابو جعفر امیر ماہ بہرائچی۔ یہ مرید وخلیفہ حضرت علاء الدین جے پوری اور وہ حضرت قوام الدین اور وہ اپنے باپ امیر کبیر سید قطب الدین محمد مدنی اور وہ سید نجم الدین کبریٰ اور وہ حضرت عمار یاسر اور وہ حضرت ابو نجیب سہروردی اور وہ شیخ احمد غزالی اور وہ حضرت ابو بکر نسّاج اور وہ ابو القاسم گر گانی اور وہ حضرت ابو عثمان مغربی اور وہ ابو علی کاتب اور وہ حضرت علی رودباری اور وہ حضرت ابوالقاسم قشیری اور وہ ابو علی دقاق اور وہ حضرت ابوالقاسم نصیرآبادی اور وہ حضرت ابو بکر شبلی اور وہ حضرت جنید بغدادی اور وہ حضرت سری سقطی اور وہ حضرت معروف کرخی اور وہ حضرت علی موسیٰ رضا اور وہ حضرت موسیٰ کاظم اور وہ حضرت امام جعفر اما صادق اور وہ حضرت امام باقر اور وہ حضرت امام زین العابدین اور وہ حضرت امام حسین اور وہ حضرت علی کرم اللہ وجہہ کے تھے۔ سلسلہ انساب پدری یہ ہے۔ سید ابو جعفر امیر ماہ بہرائچی بن سید نظام الدین بن سید حسام الدین بن سید فخر الدین ابن سید یحییٰ ابن سید ابو طالب بن سید محمود بن سید حمزہ بن سید حسن بن سید عباس بن سید محمد ابن سید علی بن سید ابو محمد اسماعیل بن حضرت امام جعفر صادق تا حضرت علیؓ۔ (1) مرأۃ الاسرار کے مصنف سید احمد ماہ سے خود ملے تھے، وہ لکھتے ہیں :۔ ’’میر سید احمد رادر سلطنت جہانگیر بادشاہ مکرر دیدہ بودم مردے نیک بود‘‘ (2) بہرائچ کے ایک پرانے خاندان کے معزز فرد ڈاکٹر خطیب صاحب کی ملکیت تاریخ آئینہ اودھ کے حاشیہ پر ایک عبارت لکھی ہوئی ہے ، یہ تحریر مولوی حکیم محمد فاروق صاحب ؒ کی ہے جنھوں نے 29؍ شوال 1365ھ (26؍ستمبر 1946ء) روز پنجشنبہ میں انتقال کیا اپنے وقت کے ذی علم ہستی تھے۔ تاریخ آئینہ اودھ کے ص 155 پر میر ماہ صاحب کے حالات میں اس خاندان کے ایک بزرگ مولوی علی الدین صاحب کا تذکرہ آیا ہے ، انکے نام پر مولوی محمد فاروق صاحب نے ذیل کا حاشیہ لکھا ہے۔ ’’یہ حضرت مولانا شاہ نعیم اللہ صاحب (متوفی 1218ھ) کے مرید تھے اور حضرت مظہر جانجاناں سے بہت عقیدت رکھتے تھے، ان ہی کی فرمائش سے بشارات مظہریہ حضرت نے لکھی ہے، اس میں ان کا ذکر محمد ماہ کے نام سے ہے ،بہت سے شاہی کا غذات میں میں نے جب محمد ماہ صاحب کی مہر دیکھی تو حضرت نانا صاحب سے سوال کیا ،انھوں نے جواب دیا کہ یہ خاندان میر ماہ ہے ، سجادہ محمد ماہ کے نام سے موسوم ہوتاتھا اور شہر بھر میں جب تک قاضی کی مہر کے ساتھ انکی مہر نہ ہوتی تھی وہ کاغذ معتبر نہ سمجھا جاتا تھا۔اور یہ بھی سنا ہے کہ انکے خاندان کے شیعہ ہوجانے سے اہل علم میں بڑا ہیجان پیدا ہوا، اس سے صاحب ۱؂ ازالۃ الغین ا ودھی تعلق رکھتے تھے ،انھوں نے ازالۃ الغین لکھی،اس خاندان کے بہت سے لوگ اودھ میں تھے۔ سید شائق حسین صاحب ماہ کلیم نگروروی نے (جواسی خاندان کے معتبر اور ذی علم فرد ہیں) جو شجرے ہم کو دیکھنے کو عنایت فرمائے ، ان سے معلوم ہوتا ہے کہ اس خاندان کی اچھی خاصی آبادی اودھ (اجودھیا) ضلع فیض آباد میں اب بھی ہے اور اس سے سلسلہ مناکحت برابر قائم ہے،تاج ماہ کا خاندان مشہور ہے۔ مرزا خدادادبیگ اکسٹرا اسسٹنٹ کمشنر بہرائچ اپنی کتاب ’ترنم خداداددر ذکر مسعود‘‘ (مطبوعہ 1888ء )کے ص 23 پر میر ماہ صاحب کے تذکرہ میں لکھتے ہیں کہ حضرت کے بھائی سید علاء الدین ماہر و اودھی اجودھیا میں مقیم رہے اور وہاں کے صاحب ولایت ہوئے۔ مصنف آئینہ اودھ لکھتے ہیں ’’طہارتِ نسب میں ان لوگوں کے کچھ شک نہیں وصلت اور مصاہرت ان کی ساتھ سادات جرول کے ہے۔ شاہ تقی حیدر قلندرکا کوکروی اپنی کتاب تذکرۃ الابرار میں ص 115پر لکھتے ہیں کہ میر ماہ صاحب کے خاندان کی ایک صاحبزادی حضرت شاہ مجا قلندر لاہرپوری کے خاندان میں حضرت عبد الرحمنجانباز قلندر کو منسوب تھیں، انکی دوسری بیوی تھی ، حضرت عبد الرحمن جانباز قلندرؒ نے 976؁ھ میں وصال فرمایا۔

औलाद
اولاد وامجاد

सोहरवर्दी सिलसिला
سلسلۂ سہروردیہ

सैयद अमीरमाह बहराइची
سید امیرماہ بہرائچی

ख़ान मोहम्मद आतिफ़اके उत्तर प्रदेश की सभा में सभा रहे। 1977 उत्तर प्रदेश सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के بہرائچ जिला के بہرائچ सभा मंडल से जनता पार्टी की पक्ष से चुनाव में हिस्सा लिया था।
خان محمد عاطفبھارت کے اترپردیش کی ساتیوں اسمبلی میں ممبر اسمبلی رہے۔ 1977 اترپردیش اسمبلی انتخابات میں انہوں نے اترپردیش کے بہرائچ ضلع کے بہرائچ اسمبلی حلقہ سے جنتا پارٹی کی جانب سے انتخابات میں حصہ لیا تھا۔

ख़ान मोहम्मद आतिफ़ एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। आपकी की जन्म 1942ई. में لکھنؤ के ملح آपश्चात् मैं हुई। आपके पिता का नाम अबद القادر ख़ां था।[8]
خان محمد عاطف ایک بھارتی سیاست دان ہیں۔ آپ کی کی پیدائش 1942ء[8] میں لکھنؤ کے ملح آباد میں ہوئی۔ آپ کے والد کا نام عبد القادر خاں تھا۔

प्रोफेसर ख़ान मोहम्मद आतिफ़ में विभाग फ़ारसी के ہید के पद से سکبدوش हुए۔ख़ान मोहम्मद आतिफ़ उर्दू जबान के साहित्यकार भी है۔अब तक आपकी कई किताबें दृश्य आम पर آचुकी हैं۔जिनकी सूची इस तरह है।[9]
پروفیسر خان محمد عاطف لکھنؤ یونی ورسٹی میں شعبہ فارسی کے ہید کے عہدے سے سکبدوش ہوئے۔خان محمد عاطف اردو زبان کے ادیب بھی ہے۔اب تک آپ کی کئی کتابیں منظر عام پر آچکی ہیں۔جن کی فہرست اس طرح ہے۔[9]

خان محمد عاطف ممبر اسمبلی بہرائچ صدر 7ویں اسمبلی[1] कार्यकाल 1 جون1977ء سے فروری 1980ء पूर्वा धिकारी کیدار ناتھ اگروال उत्तरा धिकारी دھرم پال चुनाव-क्षेत्र بہرائچ صدر जन्म 1942ء[2] ملیح آباد لکھنؤ اتر پردیشبھارت[3] राष्ट्रीयता بھارتی राजनीतिक दल جنتا پارٹی ،مسلم مجلس[4] जीवन संगी روشن آرا[5] बच्चे تین بیٹے [6] शैक्षिक सम्बद्धता لکھنؤ یونیورسٹی،تہران یونیورسٹی [7] व्यवसाय سیاست ، تدرسی धर्म اسلام
خان محمد عاطف ممبر اسمبلی بہرائچ صدر 7ویں اسمبلی[1] عہدہ سنبھالا 1 جون1977ء سے فروری 1980ء پیشرو کیدار ناتھ اگروال جانشین دھرم پال حلقہ بہرائچ صدر ذاتی تفصیلات پیدائش 1942ء[2] ملیح آباد لکھنؤ اتر پردیشبھارت[3] قومیت بھارتی سیاسی جماعت جنتا پارٹی ،مسلم مجلس[4] شریک حیات روشن آرا[5] باپ عبد القادر خاں تعلیم ایم۔اے،پی ایچ ،ڈی(فارسی)[6] مادر علمی لکھنؤ یونیورسٹی،تہران یونیورسٹی [7] ذریعہ معاش سیاست ، تدرسی مذہب اسلام

ख़ान मोहम्मद आतिफ़ ने अपना राजनैतिक यात्रा भारतीय जन सिंह से शुरू کیاتھا।आप इस पार्टी से 1967 में जुड़े और 1977 तक इस पार्टी के सदस्य रहे۔امرجنسی के समय जन सिंह का उल-हाक़ जनता पार्टी में हो गया और आप जनता पार्टी में शामिल हो गए और फिर जनता پاڑی के ٹکٹ पर بہرائچ सभा मंडल से जनता पार्टी की पक्ष से चुनाव में हिस्सा लिया और चुनाव में सफल हो कर ممبر सभा रहे।1980 तक आप उतर پردیشک सभा की समिति सभा रहे۔बाद में मुस्लिम सम्मेलन से आसंजन हो गए।
خان محمد عاطف نے اپنا سیاسی سفر بھارتیہ جن سنگھ سے شروع کیاتھا۔آپ اس پارٹی سے 1967 میں جڑے اور 1977 تک اس پارٹی کے رکن رہے۔امرجنسی کے وقت جن سنگھ کا الحاق جنتا پارٹی میں ہو گیا اور آپ جنتا پارٹی میں شامل ہو گئے اور پھر جنتا پاڑی کے ٹکٹ پر بہرائچ اسمبلی حلقہ سے جنتا پارٹی کی جانب سے انتخابات میں حصہ لیا اور انتخاب میں کامیاب ہو کر ممبر اسمبلی رہے۔1980 تک آپ اتر پردیشک اسمبلی کے ارکان اسمبلی رہے۔بعد میں مسلم مجلس سے وابستہ ہو گئے۔

ख़ान मोहम्मद आतिफ़
خان محمد عاطف

” इज़हार वारसी आधुनिक युग के एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने कविता, ग़ज़ल ,दोहा , सलासि, हर विधा में तबा आज़माई है और सफलतापूर्वक हक़ अदा किया है । “
” اظہار وارثی جدید دور کے ایک اہم نمائندہ شاعر ہیں۔انہوں نے نظم ،غزل،رباعی،قطعہ،دوہا،ماہیا،ثلاثی،ہر صنف میں طبع آزمائی کی ہے اور ان میں پر صنف کو کامیابی سے برتا ہے اور اس کا حق ادا کیا ہے۔اظہار وارثی ایک باشعور اور حساس فن کار ہے ۔اپنے ملک کے سماجی اور سیاسی حالات کے علاوہ عالمی مسائل پر ان کی گہری نظر ہے۔ان حالات اور مسائل پر کبھی بہ راہِراست اور کبھی استعاروں اور کنایوں میں اپنے خیالات اور جذبات کا اظہار کرتے ہیں ۔جن نظموں میں بہ راہِ راست خیالات اور جذبات کا اظہار کیا گیا ہے ان کو احساس کی شدت نے اثر انگیز بنا دیا ہے۔ اظہار وارثی کی اس نوع کی نظموں میں ’سوچ‘،’دشمنی کیوں‘،’دیوار‘،’جڑواں نظمیں ‘،’وعدوں کاموسم‘،اور ’میں نہیں جانتا‘،’بچے مفلس‘کے قابل ذکر ہیں۔ “

इज़हार वारसी का जन्म 21 नवम्बर् 1940ई. में हाकिम अज़हर वारसी यहाँ हुआ था । आपके पिता का नाम हाकिम अज़हर वारसी और माता का नाम कनीज़ सकीना था। इज़हार साहिब के दादा हकीम सफदर वारसी और पिता हकीम अज़हर वारसी को शहर के प्रसिद्ध चिकित्सको में शुमार होते थे । हकीम सफदर साहब हाजी वारिस अली शाह के मूरीद थे और हाजी वारिस अली शाह पर एक पुस्तक लिखी जिसका नाम जलवा वारिस है। ये किताब उर्दू मे है। इज़हार साहिब के पिता अज़हर वारसी शिक्षक शायरों में शुमार होते थे। इज़हार साहिब सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए थे। आपकी एक खास बात है आप सिर्फ़ कविता लिखते हैं किसी मुशायरा में पढ़ने नहीं जाते थे।
اظہار وارثیؔ کی پیدائش21 نومبر، 1940ء میں حکیم اظہر وارثی کے یہاں ہوئی۔ آپ کے والد کا نام حکیم اظہر وارثی اور والدہ کا نام کنيز سکینہ تھا۔ اظہار صاحب کے دادا حکیم صفدر وارثی اور والد حکیم اظہر وارثی شہر کے مشہور معالجین میں شمار ہوتے تھے۔ حکیم صفدر صاحب حاجی وارث علی شاہ کے مرید تھے اور حاجی وارث علی شاہ پر ایک کتاب لکھی جس کا نام جلوہٗ وارث ہے۔ یہ کتاب اردو میں ہے۔ اظہار صاحب کے والد حکیم اظہر استاد شاعروں میں شمار ہوتے تھے۔ اظہار صاحب سرکاری ملازمت سے سبکدوش ہوئے ہیں۔ آپ کی ایک خاص بات ہے آپ صرف شعر لکھتے ہیں کسی مشاعرہ میں پڑھنے نہیں جاتے۔

आप उर्दू शायरी में नए नए प्रयोग करने के लिए प्रसिद्ध थे। आपने उर्दू शायरी के सभी शैलियों में अपने वचन का जादू बिखेर और कई नये प्रकार आविष्कार किया । आपने आप 11 शैलियों में शायरी है।
آپ ایک اعلیٰ درجے کے شاعر ہیں۔ آپ اردو شاعری میں نئے نئے تجربات کرنے کے لیے مشہور اور معروف ہیں۔ آپ نے اردو شاعری کی تمام اصناف میں اپنے کلام کا جادو بکھیرا اورکئی نئ قسمیں ایجاد کیں۔ آپ نے 11 اصناف میں شاعری کی ہے۔ 1) غزل 2) نظم، نظم کی مشہورقسمیں ہیں (ا) پابند نظم (ب) آزاد نظم (ج) معرا نظم (د) نثری نظم۔۔ 3) رباعی 4) قطعات 5) ثلاثی 6) ماہئے 7) ہائکو 8) دوہے 9) بروے کو اردو میں رائج کیا 10)۔ سانیٹ (14مصرعوں کی نظم انگرزی میں ہوتی ہے۔ ) 11) ترایلے (یہ فرانسیسی زبان میں 8 مصرعوں کی ہوتی ہے)۔

प्रोफेसर मुग़नी तबस्सुम इज़हार वारसी के बारे में लिखते है कि
پروفیسر مغنی تبسم اظہار وارثی کے بارے میں لکھتے ہے کہ

प्रोफेसर कमर र, प्रोफेसर مغنی تبسم हैदराबाद, प्रोफेसर وہاب اشرفی پٹنہ, پدم सिरी شمش करुणाशील فاروقی, प्रोफेसर सय्यद अमीन अशरफ़ अली गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आपकी किताबों पर تبصرے लिखे। شوق بہرائچی, رفعت بہرائچی, وصفی بہرائچی, شفیع بہرائچی, جمال بابا, عبرت بہرائچی, मुहम्मद نعیم अल्लाह خیالی, محسن زیدی, ساگرمہدی،असर بہرائچی،ایمن چغتائی نانپاروی،واصف القادری،لطیف بہرائچی،اطہر رحمانی نعمت بہرائچی واغیرہ आपके ہمعصراور साथियों मैं हैं।
پروفیسر قمر رئیس، پروفیسر مغنی تبسم حیدرآباد، پروفیسر وہاب اشرفی پٹنہ، پدم سری شمش الرحمن فاروقی، پروفیسر سید امین اشرف علی گڑھ مسلم یونیورسٹی نے آپکی کتابوں پر تبصرے لکھے۔ شوق بہرائچی، رفعت بہرائچی، وصفی بہرائچی، شفیع بہرائچی، جمال بابا، عبرت بہرائچی، محمد نعیم اللہ خیالی، محسن زیدی، ساگرمہدی،اثر بہرائچی،ایمن چغتائی نانپاروی،واصف القادری،لطیف بہرائچی،اطہر رحمانی نعمت بہرائچی واغیرہ آپ کے ہمعصراور ساتھیوں میں ہیں۔

इज़हार वारसी
اظہار وارثی