शत शत नमन उस पत्नी को, जिसने अपनी सत्तर कोठरी को बचाने का भार अपने ऊपर ले लिया। उमर की ओर से उन्हें उपहार, गहने, कपड़े और सात सफेद प्रसाद दिए गए। वह उमर से कहती रहीं कि किस धर्म में मेरी मंगनी का हक़ तोड़ना जायज़ है, तुम्हारे नाक़ाबिल तरीक़ों के एड़ियों पर गिरना, तो मुझे आख़िरत के दिन शर्मिन्दा होना पड़ेगा। जब उमर उसकी बातों से प्रभावित हुआ, तो एक साल बाद, उसने अपने पति को बुलाया और दूल्हा-दुल्हन को उसके हवाले कर दिया और उसे सांत्वना दी कि मरियम पवित्र है। पति जब उसे देश ले गया तो पत्नी को उस पर शक नहीं हुआ। वह बैठकर उसे ताने मार रहा था। एक दिन उमर को यह खबर मिली, जिस पर वह घबरा गया कि मेरा सब्र, या मरियम की खुद को बचाने की ताकत, इन मूर्खों के लिए कोई मायने नहीं रखती! अत: क्रोध में आकर उसने लुटेरों पर एक बड़ी सेना भेज दी और जाकर सारे देश में लूटपाट मचा दी। जब यह सेना देश में आई, तो लोगों ने आश्चर्य से पूछा, "यह किसकी सेना है और किस लिए आई है?" अधिकारी ने कहा, "तुम्हें मरियम की पवित्रता पर भरोसा नहीं है, और उसका पति प्रतिदिन मरियम का अपमान करता है, जिससे राजा ने तुम्हारे विनाश का आदेश दिया है। इस तरह से मेरी बदनामी होती रहती है। वे लोग यहाँ नहीं हैं।" तब मारी ने पन्हजी जनजाति के लोगों को दिलासा दिया और कुछ वृद्ध महिलाओं को अपने साथ उमर की सेवा में ले गया, जहाँ उसने उमर से कहा, "आप एक शासक हैं। फिर भी बदनामी से नाराज होकर, वह अपनी सेना के साथ गरीबों को मार डालता है, जनता का मुंह कोई नहीं रोक सकता। इसलिए मैं साहन के चेहरे में हूं। यदि तूने ऐसा काम न किया होता तो तुझे मूर्ख कौन कहता और मेरे पति को मुझ पर शक क्यों होता और तू हम पर फिर आक्रमण करता? "मैरी ने इस कहानी को दिल से सुनाया और बहुत कुछ पूछा। उसने सेना को वापस बुला लिया और मारी की पत्नी के सामने अपने दिल को न छोड़ने की शपथ ली, फिर सातवीं पत्नी मारी ने भी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अपने ऊपर ली गई शपथ को स्वीकार कर लिया, ताकि बदनामी का कलंक दूर हो जाए संपूर्ण जनजाति। उन्होंने मैरी को देखने का फैसला किया। आग में उसके गले में लोहे का तिपाई डाल देना चाहिए। फिर दोष लगाने से बचना चाहिए, क्योंकि यह दाग सदा के लिये मिट जाएगा। जब मैरी को यह बात पता चली तो उन्होंने इस परीक्षा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके बाद सभी ने माचिस जलाई। मैरी, एक कॉलर पहनने के बजाय, आग के एक छोर से दूसरे छोर तक आग की शाखाओं पर चढ़ गई, और उसके बाल भी नहीं उड़े। फिर उमर पहले शर्मिंदा होकर खड़ा हो गया। तो वह खुश था, क्योंकि दोष उसके ऊपर आ गया था और मरियम के पति का दिल भी साफ हो गया था।
ان زال کي هزارين شاباسون ۽ جس هجن، جنهن پنهنجي سيل ستر بچائڻ لاءِ پاڻ پتوڙيو. عمر جي طرفان کيس ڳھہ ڳٺا، زيور، ڪپڙا ۽ ست اڇيو آڇيون ڏنيون ويون، ڊپ خوشيون ڏيکاريون ويون، مگر هو ڪنهن بہ ڳالهہ تي راضي نہ ٿي. عمر کي ايئن چوندي رهي تہ اهو ڪهڙي مذهب ۾ روا آهي تہ پنهنجي مڱيندي جو حق ڀڃي، تنهنجي بي بقا اسبابن جي چٽڪن تي لڳي ريجهي وڃان، پوءِ آخرت جي ڏينهن هلي شرمسار ٿيان. عمر جڏهن هن جي آهن دانهن کان متاثر ٿيو، تڏهن هڪ سال بعد سندس مڙس کي گهرائي ڳهن ڳٺن سميت ٻانهن ان جي حوالي ڪيائين ۽ کيس مارئي جي پاڪدامن هجڻ جي به تسلي ڏنائين. جڏهن مڙس ان کي وٺي ملڪ پهتو، تہ ان جو شڪ زال مان نه لٿو. آٿئي ويٺي کيس طعنا پيو هڻندو هو. هڪڙي ڏينهن اها خبر عمر کي وڃي پئي، جنهن تي کيس تڪليف پهتي تہ ڇا منهنجو صبر، ڇا مارئي جي پنهنجي بچائڻ جي مضبوطي ان جي هنن بيوقوفن کي ڪو بہ قدر ڪونهي! سو ڪاوڙجي هڪ وڏو لشڪر ماروئڙن تي چاڙهيائين تہ وڃي سڄو ملڪ تاراج ڪري چڏيو. جڏهن اهو لشڪر ملڪ ۾ پهتو ته ماروئڙا حيران ٿي ويا ۽ پڇيائون تہ هي فوج ڪنهنجي آهي ۽ ڇا جي لاءِ آئي آهي؟ عملدار چيو ته، توهان مارئي جي پاڪدامني تي ويساهہ نٿا ڪريو ۽ ان جو مڙس مهڻن طعنن سان مارئي کي روز ٿو وڍ وجهي، جنهن کان بادشاھہ توهان جي تباهي جو حڪم ڏنو آهي تہ ان نموني منهنجي بدنامي ٿيندي ٿي رهي، اهي ماڻهو ئي هت نہ هجن.