इरोम चानू शर्मिला(जन्म:14 मार्च 1972) मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जो पूर्वोत्तर राज्यों में लागू सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम, १९५८ को हटाने के लिए पिछले एक दशक से भी अधिक समय (4 नवम्बर 2000[1] ) से भूख हड़ताल पर हैं। पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न हिस्सों में लागू इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है। शर्मिला इसके खिलाफ इम्फाल के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल कर रही हैं। सरकार ने शर्मिला को आत्महत्या के प्रयास में गिरफ्तार कर लिया था। क्योंकि यह गिरफ्तारी एक साल से अधिक नहीं हो सकती अतः हर साल उन्हें रिहा करते ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता था।[2] नाक से लगी एक नली के जरिए उन्हें खाना दिया जाता था तथा इस के लिए पोरोपट के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था। 14 वर्षों की गिरफ्तारी के बाद 20 अगस्त 2014 को सेशन कोर्ट के आदेश से उन्हें रिहा किया गया।[3]
इरोम चानू शर्मिला(जन्म:14 मार्च 1972) मणिपुर'क मानवाधिकार कार्यकर्ता छथि, जे पूर्वोत्तर राज्य सबमें लागू सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम, १९५८ के हटेवाक लेल एक दशक सँ सेहो बेसी समय (4 नवम्बर 2000[1] ) सँ भूख हड़ताल पर छथि। पूर्वोत्तर राज्य सबहक विभिन्न हिस्सा सबमें लागू अहि कानूनके तहत सुरक्षा बल सबके ककरो देखते गोली मार' अथवा बिना वारंट'के गिरफ्तार कर'के अधिकार भेटल अछि। शर्मिला करे खिलाफ इम्फाल'के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन सँ जुड़ि क' भूख हड़ताल क' रहली हन। सरकार शर्मिलाके आत्महत्याक प्रयासमें गिरफ्तार क' लेने छल। किएक की इ गिरफ्तारी एक साल सँ बेसी नञिं भ' सकैत अछि तै सब साल हुनका रिहा करैतए दोबारा गिरफ्तार कय लेल जायत छल।[2] नाक सँ लागल एकटा नलीक माध्यम सँ हुनका खाना देल जायत छल तथा अहि के लेल पोरोपट'के सरकारी अस्पताल'क एगो रूम'के अस्थायी जेल बना देल गेल छल। 14 वर्षक गिरफ्तारीके बाद 20 अगस्त 2014 के सेशन कोर्टके आदेश सँ हुनका रिहा कएल गेल।[3]


इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब की थी जब 2 नवम्बर के दिन मणिपुर की राजधानी इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 बेगुनाह लोग मारे गए थे। उन्होंने 4 नवम्बर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था, इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को हटवाने में वह महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल कर कामयाब होंगी।[1]
इरोम अपन भूख हड़ताल तखन केने छलीह जखन 2 नवम्बर'के दिन मणिपुर'क राजधानी इंफाल'के मालोम'में असम राइफल्स'के जवानक हाथे 10टा बेगुनाह लोक मारल गेल छल। ओ 4 नवम्बर 2000 के अपन अनशन शुरू क देने छलीह, अहि उम्मीदक संग कि 1958 सँ अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम आओर त्रिपुरा'में आओर 1990 सँ जम्मू-कश्मीर'में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) के हटेवा'में ओ महात्मा गांधी'के नक्शाकदम पर चलि कय कामयाब हेतीह।[1]

आत्महत्या की कोशिश करने का मुकद्दमा
आत्महत्या'क कोशिश कर'के मुकद्दमा

२०१३ में उन पर आत्महत्या की कोशिश करने का मुकद्दमा चलाने के लिए अदालत में आरोप तय किए गया।[1] 20 अगस्त 2014 को सेशन कोर्ट के आदेश से उन्हें रिहा किया गया।[3]
2013 में हुनका उपर आत्महत्या'क कोशिश कर'के मुकद्दमा चलेवाक लेल अदालतमें आरोप तय कएल गेल।[1] 20 अगस्त 2014 के सेशन कोर्ट'के आदेश सं हुनका रिहा कय़ देल गेल।[3]

आम आदमी पार्टी द्वारा राजनीति में आने का निमंत्रण
आम आदमी पार्टी द्वारा राजनीति'में आब'के निमंत्रण

जस्ट पीस फाउंडेशन ट्रस्ट (जेपीएफ) के जरिए शर्मिला को आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने मणिपुर की लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर २०१४ के लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया किंतु उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।[4]
जस्ट पीस फाउंडेशन ट्रस्ट (जेपीएफ)'के द्वारा शर्मिलाके आम आदमी पार्टी'के नेता प्रशांत भूषण मणिपुर'क लोकसभा सीट सँ आम आदमी पार्टी (आप)टके टिकट पर 2014 के लोकसभा चुनाव लड़'के प्रस्ताव देलथि मुदा ओ एकरा अस्वीकार कय देलथिन्ह।[4]

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (उच्चारण सहायता·सूचना, गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: १७ सितम्बर १९५०) भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं। भारत के राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें २६ मई २०१४ को भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलायी।[2][3] वे स्वतन्त्र भारत के १५वें प्रधानमन्त्री हैं तथा इस पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं।
नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (उच्चारण सहायता·सूचना, गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: 17 सितम्बर 1950) भारत'क वर्तमान प्रधानमन्त्री छथि। भारतक राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी हुनका 26 मई 2014 के भारत'क प्रधानमन्त्री पदक शपथ दिएलथिन्ह ।[2][3] ओ स्वतन्त्र भारत'क 15हम प्रधानमन्त्री छथि तथा अहि पद पर आसीन हुअ बला स्वतंत्र भारत'में जन्म लेबए बला पहिल व्यक्ति छथि।

उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने २०१४ का लोकसभा चुनाव लड़ा और २८२ सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की।[4] एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की।[5][6]
हुनकर नेतृत्वमें भारतक प्रमुख राजनितिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव लड़ल आओर 282 सीट जीतकय अभूतपूर्व सफलता प्राप्त केलक।[4] एगो सांसदक रूपमें ओ उत्तर प्रदेशक सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपन गृहराज्य गुजरात'क वडोदरा संसदीय क्षेत्र सँ चुनाव लड़ला आओर दुनु ठाम सँ जीतला।[5][6]

आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड (महोबा) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर-भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है। जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है।[1]
आल्हा आओर ऊदल दू भाई छलाह। जे बुन्देलखण्ड (महोबा)के वीर योद्धा छलाह। हिनकर वीरताक खिस्सा अइयो उत्तर-भारतके गाँव-गाँवमें गायल जायत अछि। जगनिक आल्ह-खण्ड नामक एगो काव्यक रचना केने छलाह ओहिमे ई वीर सबहक गाथा वर्णित अछि।[1]

पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है - "यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।ऐसा प्रचलित है की ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है और गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था ,पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके द्वारा मारा गया था l वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।"[2]
पं० ललिता प्रसाद मिश्र अपने ग्रन्थ आल्हखण्डक भूमिकामें आल्हाके युधिष्ठिर आओर ऊदलके भीमक साक्षात अवतार बतबैत छथि, लिखने छथि - "ई दुनु वीर अवतारी हुअके कारण अतुल पराक्रमी छलाह। जे प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दीमें जन्म लेने छलाह आओर १३वीं शताब्दीके पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम देखबैत वीरगतिके प्राप्त केने छलाह।हएन प्रचलित अछि की ऊदल के पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्याके बाद आल्हा संन्यास ल लेने छल आओर जे आई तक अमर अछि आओर गुरु गोरखनाथके आदेश सँ आल्हा पृथ्वीराजके जीवनदान द देने छल ,पृथ्वीराज चौहानके परम मित्र संजम सेहो महोबाक अहिं लड़ाईमें आल्हा उदलके सेनापति बलभद्र तिवारी जे कान्यकुब्ज आओर कश्यप गोत्रके छलाह हुनका द्वारा मारल गेल छलाह l ओ शताब्दी वीर सबहक सदी कहल जा सकैत अछि आओर ओही समय के अलौकिक वीरगाथा सब के तखन सँ गाबैत हम सब चलैत आबि रहल छी। अइयो कायर तक हुनका (आल्हा) सुनि क' जोशमें भरि अनेक तरहक साहसके काज क' दैत अछि यूरोपीय महायुद्धमें सैनिक सबहकके रणमत्त कर'के लेल ब्रिटिश गवर्नमेण्टके सेहो अहिं (आल्हखण्ड) के मदति लिअ परैत छल।"[2]

प्रणव कुमार मुखर्जी (बांग्ला: প্রণব কুমার মুখোপাধ্যায়, जन्म: 11 दिसम्बर 1935, पश्चिम बंगाल) वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। नेहरू-गान्धी परिवार से उनके करीबी सम्बन्ध रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
प्रणव कुमार मुखर्जी (बांग्ला: প্রণব কুমার মুখোপাধ্যায়, जन्म: 11 दिसम्बर 1935, पश्चिम बंगाल) वर्तमानमें भारतके राष्ट्रपति छथि। ओ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके वरिष्ठ नेता छथि। नेहरू-गान्धी परिवार सँ हुनकर ल'गक सम्बन्ध रहल छन्हि। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन हुनका अपन उम्मीदवार घोषित केलक। सोझ मुकाबलामें ओ अपन प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा के हरेला। ओ 25 जुलाई 2012 के भारतके तेरहवाँ राष्ट्रपतिके रूपमें पद आओर गोपनीयताक शपथ लेलनि।

प्रणव मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहाँ हुआ था।
प्रणव मुखर्जीक जन्म पश्चिम बंगालके वीरभूम जिलेमें किरनाहर शहरके निकट स्थित मिराती गाँवके एक ब्राह्मण परिवारमें कामदा किंकर मुखर्जी आओर राजलक्ष्मी मुखर्जीके एतय भेल छल।

उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे।[1] उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षो से अधिक जेल की सजा भी काटी थी।
हुनकर पिताजी1920 सँ कांग्रेस पार्टीमें सक्रिय हुअके संग पश्चिम बंगाल विधान परिषदमें 1952 से 64 तक सदस्य आओर वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष रहि चुकल छलाह।[1] हुनकर पिता एगो सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी छलाह, जे ब्रिटिश शासनक खिलाफतके परिणामस्वरूप 10 वर्षो सँ बेसी जेलक सजा सेहो काटने छलाह।

प्रणव मुखर्जी ने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था।
प्रणव मुखर्जी सूरी (वीरभूम)के सूरी विद्यासागर कॉलेजमें शिक्षा प्राप्त केने छलाह, जे ओही समय कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ सम्बन्धित छल।

कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की है। वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। वे बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।[2]
कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ ओ इतिहास आओर राजनीति विज्ञानमें स्नातकोत्तरके संग-संग कानूनक डिग्री हासिल केने छथि। ओ एगो वकील आओर कॉलेज प्राध्यापक सेहो रहि चुकल छथि। हुनका मानद डी.लिट उपाधि सेहो भेटल छनि। ओ पहिले एगो कॉलेज प्राध्यापकके रूपमें आओर बादमें एगो पत्रकारक रूपमें अपन कैरियर शुरू केलथि। ओ बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में सेहो काज केने छथि। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषदके ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलनके अध्यक्ष सेहो रहल छथि।[2]

बंगाल (भारत) में वीरभूम जिले के मिराती (किर्नाहार) गाँव में 11 दिसम्बर 1935 को कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर जन्मे प्रणव का विवाह बाइस वर्ष की आयु में 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी - कुल तीन बच्चे हैं। पढ़ना, बागवानी करना और संगीत सुनना- तीन ही उनके व्यक्तिगत शौक भी हैं।
बंगाल (भारत)में वीरभूम जिलाक मिराती (किर्नाहार) गाँवमें 11 दिसम्बर 1935 के कामदा किंकर मुखर्जी आओर राजलक्ष्मी मुखर्जीके घर जन्मे प्रणवक विवाह बाइस वर्षक आयुमें 13 जुलाई 1957 के शुभ्रा मुखर्जीके संग भेल छलैह। हुनकर दुगो बेटा आओर एगो बेटी - टोटल तीनगो बच्चा छनि। पढ़नाइ, बागवानी केनाइ आओर संगीत सुननाइ- तिने टा हुनकर व्यक्तिगत शौक छनि।

मिथिलाहोस्ट एक वेवेबहोस्टिंग कम्पनी हैं । इसका प्रारम्भ २०१२ अगस्त १५ को भारत के राज्य पश्चिम बंगाल के शहर कोलकाता मे हुआ था । ४ वर्ष से निरन्तर मिथिलाहोस्ट विभिन्न तरह की सेवा दे रहा हैं'। जैसे होस्टिंग, डोमेन, एसएसएल सर्टिफिकेट, इमेल होस्टिंग, वेबसाइट डिजाइन इत्यादि । मिथिलाहोस्ट का संस्थापक रौशन चौधरी हैं ।[1]
मिथिलाहोस्ट एक वेबहोस्टिङ कम्पनी अछि । एकर सुरुआत सन् २०१२ अगस्त १५ के भारतक राज्य पश्चिम बङ्गालक सहर कोलकातामे भेल छल । ४ वर्ष सँ निरन्तर मिथिलाहोस्ट विभिन्न तरहक सेवा दऽ रहल अछि । जेना होस्टिङ, डोमेन, एसएसएल सर्टिफिकेट, इमेल होस्टिङ, वेबसाइट डिजाइन इत्यादि । मिथिलाहोस्टके संस्थापक रौशन चौधरी छथि ।[1]

तिरहुता लिपि का प्रयोग कुछ लोग नेपाल और उत्तर बिहार की मैथिली भाषा को लिखने के लिये करते हैं। इसे 'मैथिली लिपि' और 'मिथिलाक्षर' भी कहा जाता है। इस लिपि का प्राचीनतम् नमूना दरभंगा जिला के कुशेश्वरस्थान के निकट तिलकेश्वरस्थान के शिव मन्दिर में है। इस मन्दिर में पूर्वी मागधी प्राकृत में लिखा है कि मन्दिर 'कात्तिका सुदी' (अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) शके १२५ (अर्थात २०३ ई सन्) में बना था। इस मन्दिर की लिपि और आधुनिक तिरहुता लिपि में बहुत कम अन्तर है।
तिरहुता लिपि मूल रूप सँ भारत आओर नेपालक मिथिला क्षेत्रमें कएल जायत अछि। एकरा 'मैथिली लिपि' आओर 'मिथिलाक्षर' सेहो कहल जायत अछि। अहिं लिपिक प्राचीनतम् नमूना दरभंगा जिलाके कुशेश्वरस्थानक निकट तिलकेश्वरस्थानके शिव मन्दिरमें अछि। अहिं मन्दिरमें पूर्वी मागधी प्राकृतमें लिखल गेल अछि कि मन्दिर 'कात्तिका सुदी' (अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) शके १२५ (अर्थात २०३ ई सन्) में बनल छल। अहिं मन्दिरक लिपि आओर आधुनिक तिरहुता लिपिमें बहुत कम अन्तर अछि।

किन्तु २0वीं शताब्दी में क्रमश: अधिकांश मैथिली के लोगों ने मैथिली लिखने के लिये देवनागरी का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया। किन्तु अब भी कुछ पारम्परिक ब्राह्मण (पण्डित) 'पाता' (विवाह आदि से सम्बन्धित पत्र) भेजने के लिये इसका प्रयोग करते हैं। सन् २००३ ईसवी में इस लिपि के लिये फॉण्ट का विकास किया गया था।
किन्तु २0वीं शताब्दीमें क्रमश: अधिकांश मैथिल मैथिली देवनागरी'क प्रयोग केनाई सुरु कय देलक। किन्तु अखनो मैथिल ब्राह्मण (पण्डित) 'पाता' (विवाह आदि सँ सम्बन्धित पत्र) पठेवाक लेल एकर प्रयोग करैत अछि। सन् २००३ ईसवीमें अहिं लिपि के लेल फॉण्टक निर्माण कएल गेल छल।

यह लिपि बंगला लिपि से मिलती-जुलती है किन्तु उससे थोड़ी-बहुत भिन्न है। यह पढ़ने में बंगला लिपि की अपेक्षा कठिन है।
मिथिलाक्षर बंगला लिपि आओर असामी सँ मिलैत जुलैत अछि मुदा ओही सँ बेस भिन्न अछि।

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दरभंगा शब्द संस्कृत भाषा के शब्द 'द्वार-बंग' या फारसी भाषा के 'दर-ए-बंग' यानि बंगाल का दरवाजा का मैथिली भाषा में कई सालों तक चलनेवाले स्थानीयकरण का परिणाम है। ऐसा कहा जाता है कि मुगल काल में दरभंगी खान ने शहर की स्थापना की थी। लेकिन कुछ लोग इसका खंडन करते हैं और मानते हैं कि दरभंगी खान मुगल काल में विकसित दरभंगा शहर का कोई व्यापारी रहा होगा।
दड़िभंगा शब्द संस्कृत भाषाक शब्द 'द्वार-बंग' अथवा फारसी भाषाक 'दर-ए-बंग' मतलब बंगालक दरवाजाके मैथिली भाषामें कतेको वर्ष सँ चलवाक स्थानीयकरण प्रमाण अछि। एहनो कहल जायत अछि कि मुगल कालमें दरभंगी खान शहरक स्थापना केने छल। मुदा किछु लोक अहिं बातक खंडन करैत अछि आओर मानैत अछि की दरभंगी खान मुग़ल कालमें विकसित दड़िभंगा शहरके कोनो व्यपारी रहल होयत।

वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के एक राजा जो जनक कहलाते थे, सिरध्वज जनक की पुत्री सीता थी।[1] विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, सुगौना के ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं को कला, संस्कृति और साहित्य का बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानों के लेखन से इस क्षेत्र ने प्रसिद्धि पाई। ओईनवार राजा शिवसिंह के पिता देवसिंह ने लहेरियासराय के पास देवकुली की स्थापना की थी। शिवसिंह के बाद यहाँ पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा हुए। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी किए गए सोने एवं चाँदी के सिक्के यहाँ के इतिहास ज्ञान का अच्छा स्त्रोत है। दरभंगा शहर १६ वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी थी। १८४५ इस्वी में ब्रिटिश सरकार ने दरभंगा सदर को अनुमंडल बनाया और १८६४ ईस्वी में दरभंगा शहर नगर निकाय बन गया।[2] १८७५ में स्वतंत्र जिला बनने तक यह तिरहुत के साथ था। १९०८ में तिरहुत के प्रमंडल बनने पर इसे पटना प्रमंडल से हटाकर तिरहुत में शामिल कर लिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में दरभंगा को प्रमंडल का दर्जा देकर मधुबनी तथा समस्तीपुर को इसके अंतर्गत रखा गया।
वैदिक स्रोतोंके मुताबिक आर्य सबहक विदेह शाखा आगिक संरक्षणमें सरस्वती तट सँ पूबमें सदानीरा (गंडक)के ओर कूच केलथि आओर विदेह राज्यक स्थापना केलथि। विदेहके राजा मिथि के नाम पर इ प्रदेश मिथिला कहायल। रामायणकालमें मिथिलाके राजा जनक कहायत छल, सिरध्वज जनक'क पुत्री सीता छलीह।[1] विदेह राज्य'क अंत भेला पर इ प्रदेश वैशाली गणराज्यके नाम सँ जान' जाय लागल। एकर बाद इ मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के गुलाम बनल रहल। १३ वीं सदीमें पश्चिम बंगालके मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियासके समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रक बँटवारा भ गेल। उत्तरी भाग जेकर अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुरक उत्तरी हिस्सा आबैत छल, सुगौनाके ओईनवार राजा कामेश्वर सिंहके हिस्सामें अबैत छल। ओईनवार राजा सबके कला, संस्कृति और साहित्यके बढ़ावा दिअ लेल जानल जायत अछि। कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानके लेखन सँ अहि क्षेत्रके प्रसिद्धि भेटलय। ओईनवार राजा शिवसिंहके पिता देवसिंह लहेरियासराय लग देवकुली के स्थापना केलथि (वर्तमानमें देकुली नाम सँ जानल जायत अछि)। शिवसिंहके बाद एतय पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा भेला। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी कएल गेल सोना आओर चंडीके सिक्का एतयके इतिहास ज्ञानक स्रोत अछि। दरभंगा शहर १६ वीं सदीमें दरभंगा राजक राजधानी छल। १८४५ इस्वीमें ब्रिटिश सरकार दरभंगा सदर के अनुमंडल बनेलक आओर १८६४ ईस्वीमें दरभंगा शहर नगर निकाय बनायल गेल।[2] १८७५ में स्वतंत्र जिला बनए तक इ तिरहुतके संग छल। १९०८ में तिरहुतके प्रमंडल बनला पर एकरा पटना प्रमंडल सँ हटाक' तिरहुतमें शामिल क' देल गेल। स्वतंत्रताके पश्चात १९७२ में दरभंगा के प्रमंडलक दर्जा द' क' मधुबनी आओर समस्तीपुर के अहिंके अंतर्गत राखल गेल।

दरभंगा जिला का कुल क्षेत्रफल 2,279 वर्ग कि०मी० है। समूचा जिला एक समतल उपजाऊ क्षेत्र है जहाँ कोई चिह्नित वनप्रदेश नहीं है। जिले में हिमालय से उतरने वाली नित्यवाही औ‍र बरसाती नदियों का जाल बिछा है। कमला, बागमती, कोशी, करेह औ‍र अधवारा समूह की नदियों से उत्पन्न बाढ़ हर वर्ष लाखों लोगों के लिए तबाही लाती है[3] औसत सालाना ११४२ मिमी वर्षा का अधिकांश मॉनसून से प्राप्त होता है। दरभंगा जिले को आमतौर पर निम्न चार क्षेत्रों में बाँटा जाता है:
दरभंगा जिला'क कुल क्षेत्रफल 2,279 वर्ग कि०मी० अछि। समूचा जिला एगो समतल उपजाऊ क्षेत्र अछि जतय कोनो चिह्नित वनप्रदेश नहि अछि। जिलामें हिमालय सण आबय वाली नित्यवाही आओर बरसाती नदी सबहक जाल अछि। कमला, बागमती, कोशी, करेह आओर अधवारा समूहक नदियों सँ उत्पन्न बाढ़ि प्रत्येक वर्ष लाखों लोगक लेल तबाही लाबैत अछि[3] औसत सालाना ११४२ मिमी वर्षाक अधिकांश मॉनसून सँ भेटैत अछि। दरभंगा जिलाक आमतौर पर निम्न चारि गो क्षेत्रमें बाँटल गेल अछि:

घनश्यामपुर, बिरौल तथा कुशेश्वरस्थान प्रखंड में कोशी के द्वारा जमा किया गया गाद क्षेत्र जहाँ दलदली भाग मिलते हैं। बूढ़ी गंडक के दक्षिण का ऊँचा तथा उपजाऊ भूक्षेत्र जहाँ रबी की खेती की जाती है। बूढ़ी गंडक औ‍र बागमती के बीच का दोआब क्षेत्र जो नीचा और दलदली है। यहाँ २९७०६ हेक्टेयर भूमि चौर क्षेत्र है। सदर क्षेत्र जो ऊँचा है और कई नदियाँ यहाँ से प्रवाहित है।
घनश्यामपुर, बिरौल तथा कुशेश्वरस्थान प्रखंडमें कोशीके द्वारा जमा कएल गेल गाद क्षेत्र जतय दलदली भाग भेटैत अछि। बूढ़ी गंडकके दक्षिणक ऊँच तथा उपजाऊ भूक्षेत्र जतय रबीक खेती कएल जायत अछि। बूढ़ी गंडक आओर बागमतीके बीचक दोआब क्षेत्र जे नीचा आओर दलदली अछि। एतय २९७०६ हेक्टेयर भूमि चौरक क्षेत्र अछि। सदर क्षेत्र जे ऊँच अछि

2001 की जनगणना के अनुसार इस जिला की कुल जनसंख्या 32,85,493 है जिसमें शहरी क्षेत्र तथा देहाती क्षेत्र की जनसंख्या क्रमश: 2,66,834 एवं 30,18,639 है।
2001 के जनगणनाके अनुसार अहि जिलाक कुल जनसंख्या 32,85,493 अछि जाहिमें शहरी क्षेत्र तथा देहाती क्षेत्रक जनसंख्या क्रमश: 2,66,834 एवं 30,18,639 अछि।

दरभंगा जिले के अंतर्गत 3 अनुमंडल, 18 प्रखंड, 329 पंचायत, 1,269 गांव एवं 23 थाने हैं।
दरभंगा जिलाके अंतर्गत 3 अनुमंडल, 18 प्रखंड, 329 पंचायत, 1,269 गांव एवं 23 थाना अछि।

दरभंगा
दड़िभंगा

मधुबनी की मुख्य भाषा मैथिली है जो सुनने में मधुर एवं सरस है। प्राचीन काल में यहाँ के वनों में मधु (शहद) अधिक पाए जाते थे इसलिए जगह का नाम मधु + वनी से मधुबनी हो गया।[1] कुछ लोगों का मानना है मधुबनी शब्द मधुर + वाणी से विकसित हुआ है।
मधुबनीक मुख्य भाषा मैथिली अछि जे सुन'में मधुर आ सरस अछि। पहिलुका समयमें एतयके जंगलमें मौध (शहद) बेसी भेटैत छल ताहि लेल जगह का नाम मधु + वनी सँ मधुबनी भ' गेल।[1] किछ लोकक मानब छै मधुबनी शब्द मधुर + वाणी सँ विकसित भेल अछि।

मधुबनी
मधुबनी भारत

सीतामढ़ी (अंग्रेज़ी: Sitamarhi,उर्दू: سيتامارهى) भारत के मिथिला का प्रमुख शहर है जो पौराणिक आख्यानों में सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है।[1]त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।[2]सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। यह शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर अवस्थित है। रामायण काल में यह मिथिला राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग था। 1908 ईस्वी में यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। स्वतंत्रता के पश्चात 11 दिसम्बर 1972 को इसे स्वतंत्र जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्तमान समय में यह तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय और प्रमुख पर्यटन स्थल है।
सीतामढ़ी (अंग्रेज़ी: Sitamarhi,उर्दू: سيتامارهى) भारतके मिथिलाक प्रमुख शहर अछि जे पौराणिक आख्यान सबमें सीताक जन्मस्थलीके रूपमें उल्लिखित अछि।[1]त्रेतायुगीन आख्यान सबमें दर्ज इह हिंदू तीर्थ-स्थल मिथिलाके प्रमुख पर्यटन स्थलों में सँ एकटा अछि।[2]सीताके जन्मक कारण अहिं नगरक नाम पहिले सीतामड़ई, फेर सीतामही आओर कालांतरमें सीतामढ़ी पड़ल। इ शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदीके तट पर अवस्थित अछि। रामायण कालमें इ मिथिला राज्यक एकटा महत्वपूर्ण अंग छल। 1908 ईस्वीमें इ मुजफ्फरपुर जिलाक हिस्सा बनल। स्वतंत्रताके पश्चात 11 दिसम्बर 1972 के एकरा स्वतंत्र जिलाक दर्जा भेटल। वर्तमान समय में इ तिरहुत कमिश्नरीके अंतर्गत बिहार राज्यक एक जिला मुख्यालय आओर प्रमुख पर्यटन स्थल अछि।

मुजफ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के सबसे बड़े शहर, तिरहुत मंडल का मुख्यालय तथा मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले का प्रमुख नगर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लिच्ची का कोई जोड़ नहीं।यहाँ तक भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को यहाँ से लिच्ची भेजी जाती है।[1] [2]उत्तर में पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी या सीतामढी, दक्षिण में वैशाली और सारण, पूर्व में समस्तीपुर और दरभंगा तथा पश्चिम में गोपालगंज से मुजफ्फरपुर जिला घिरा है। बज्जिका यहाँ की बोली और हिन्दी तथा उर्दू यहाँ की मुख्य भाषाएँ हैं।
मुजफ्फरपुर मिथिलाक (भारत) सब सँ पैघ शहर , तिरहुत मंडलक मुख्यालय तथा मुज़फ़्फ़रपुर ज़िलाक प्रमुख नगर एवं मुख्यालय अछि। अपन सूती वस्त्र उद्योग तथा आम आओर लीची एहेन फलक नीक उत्पादनक लेल इ जिला पूरा विश्वमें जानल जायत अछि, खासक' एतयके शाही लिच्ची के कोनो दोसर जोड़ा नहि।एतय टाक की भारतक राष्ट्रपति आओर प्रधानमंत्री तकके एतय सँ लिच्ची पठायल जायत अछि।[1] [2]उत्तरमें पूर्वी चंपारण आओर सीतामढ़ी या सीतामढी, दक्षिणमें वैशाली आओर सारण, पूर्वमें समस्तीपुर आओर दरभंगा तथा पश्चिममें गोपालगंज सँ मुजफ्फरपुर जिला घेरायल अछि। मैथिली एतयके प्रमुख भाषा अछि।

समस्तीपुर का परंपरागत नाम सरैसा है। इसका वर्तमान नाम मध्य काल में बंगाल एवं उत्तरी बिहार के शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास ((१३४५-१३५८ ईस्वी) के नाम पर पड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका प्राचीन नाम सोमवती था जो बदलकर सोम वस्तीपुर फिर समवस्तीपुर और समस्तीपुर हो गया।
समस्तीपुरक परंपरागत नाम सरैसा अछि। एकर वर्तमान नाम मध्य कालमें बंगाल एवं मिथिलाक शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास ((१३४५-१३५८ ईस्वी)के नाम पर पड़ल अछि। किछ किछु लोकक मानैत छै कि एकर पहिलुका नाम सोमवती छल जे बदलिक' सोम वस्तीपुर फेर समवस्तीपुर आओर समस्तीपुर भ' गेल।

बेगूसराय बिहार प्रान्त का एक जिला है। बेगूसराय मध्य बिहार में स्थित है। १८७० ईस्वी में यह मुंगेर जिले के सब-डिवीजन के रूप में स्थापित हुआ। १९७२ में बेगूसराय स्वतंत्र जिला बना।
बेगूसराय मिथिलाक एगो प्रमुख जिला अछि। बेगूसराय बिचमें स्थित है। १८७० ईस्वीमें यह मुंगेर जिलाक सब-डिवीजनके रूपमें स्थापित भेल छल। १९७२ में बेगूसराय स्वतंत्र जिला बनायल गेल।

बेगूसराय उत्तर बिहार में 25°15' और 25° 45' उतरी अक्षांश और 85°45' और 86°36" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। बेगूसराय शहर पूरब से पश्चिम लंबबत रूप से राष्ट्रीय राजमार्ग स जुडा है। इसके उत्तर में समस्तीपुर, दक्षिण में गंगा नदी और लक्खीसराय, पूरब में खगडिया और मुंगेर तथा पश्चिम में समस्तीपुर और पटना जिले हैं।
बेगूसराय मिथिलामें 25°15' आओर 25° 45' उतरी अक्षांश आओर 85°45' आओर 86°36" पूर्वी देशांतरक बीच स्थित अछि। बेगूसराय शहर पूरब सँ पश्चिम लंबबत रूप सँ राष्ट्रीय राजमार्ग सँ जुडल अछि। एकरा उत्तरमें समस्तीपुर, दक्षिणमें गंगा नदी आओर लक्खीसराय, पूबमें खगडिया आओर मुंगेर तथा पश्चिममें समस्तीपुर आओर पटना जिला अछि।

शिवहर पहले मुजफ्फरपुर फिर हाल तक सीतामढी जिले का अंग रहा है। इस क्षेत्र का स्थान हिंदू धर्मशास्त्रों में अति महत्वपूर्ण है। त्रेता युग में भगवान राम की पत्नी देवी सीता का जन्म सीतामढी के निकट पुनौरा में हुआ था। महाजनपद काल में यह वैशाली के बज्जिसंघ फिर मगध साम्राज्य का हिस्सा बना। भौगोलिक दृष्टिकोण से शिवहर तिरहुत का अंग रहा है। १३वीं सदी में मुस्लिम शासन आरंभ होने तक इस क्षेत्र में मिथिला के शासकों ने शासन किया। बाद में भी स्थानीय क्षत्रपों ने यहाँ अपनी प्रभुता कायम रखी लेकिन अंग्रेजों के आने पर यह पहले बंगाल फिर बिहार प्रांत का अंग बन गया। १९०८ ईस्वी में तिरहुत के प्रमंडल बनने पर यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। कुछ वर्ष पूर्व ६ अक्टूबर १९९४ को शिवहर को स्वतंत्र जिले का दर्जा मिला।
शिवहर पहिले मुजफ्फरपुर फेर हालतक सीतामढी जिलाक अंग रहल अछि। अहिं क्षेत्रक स्थान हिंदू धर्मशास्त्रमें अति महत्वपूर्ण अछि। त्रेता युगमें भगवान रामक अर्धांग्नी देवी सीताक जन्म सीतामढीके निकट पुनौरामें भेल छल। महाजनपद कालमें इ वैशालीके बज्जिसंघ फेर मगध साम्राज्यक अधीन रहल। भौगोलिक दृष्टिकोण सँ शिवहर तिरहुतक अंग रहल अछि। १३वीं सदीमें मुस्लिम शासन आरंभ भेला तक इ क्षेत्र मिथिलाक महान साम्राज्यक हिस्सा छल। बामें सेहो स्थानीय क्षत्रप सब एतय अपन प्रभुता कायम रखलक लेकिन अंग्रेजके अयलाक बाद पहिले बंगाल फेर बिहारक अंग बना देल गेल। १९०८ ईस्वीमें तिरहुतके प्रमंडल बनला पर इ मुजफ्फरपुर जिलाक हिस्सा बनल। किछु वर्ष पूर्व ६ अक्टूबर १९९४ के शिवहर के स्वतंत्र जिलाके दर्जा भेटल।

प्रेम खान जन्म वशीम रहमान साँचा:जनम तारीख़ और आयू धुबुरी, असम, भारत व्यवसाय अभिनेता सक्रिय वर्ष २०१५-Present
प्रेम खान जन्म वशीम रहमान आकृति:जनम तारीख़ और आयू धुबुरी, असम, भारत रोजगार अभिनेता कार्यकाल २०१५-Present

↑ "Prem Khan (Actor) Height, Weight, Age, Affairs, Biography & More - StarsUnfolded". starsunfolded.com. http://starsunfolded.com/prem-khan/. अभिगमन तिथि: 2017-06-19. ↑ "Prem Khan's Story: From Dhubri to Bollywood - Eclectic Northeast".
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18 May 2017. https://eclecticnortheast.in/prem-khans-story-dhubri-bollywood/. अभिगमन तिथि: 19 June 2017. ↑ Ahmed, Hussain (14 May 2017).
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Magicalassam.com. http://www.magicalassam.com/2017/05/adil-hussain-prem-khan-arnab-basu-biopic.html. अभिगमन तिथि: 19 June 2017. ↑ "Prem Khan,". http://www.biographybd.com/prem-khan/. अभिगमन तिथि: 19 June 2017. ↑ "Prem Khan Height, Weight, Age". bollysuperstar.com. http://bollysuperstar.com/prem-khan-height-weight-age/. अभिगमन तिथि: 2017-06-19. ↑ Anurag Barman.
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The Northeast Today. https://thenortheasttoday.com/from-dhubri-to-bollywood-the-inspiring-journey-of-prem-khan-from-assam/. अभिगमन तिथि: 26 June 2017.
The Northeast Today. https://thenortheasttoday.com/from-dhubri-to-bollywood-the-inspiring-journey-of-prem-khan-from-assam/. अन्तिम पहुँच तिथि: 26 June 2017.

बैसाली मोहंती (जन्म 5 अगस्त, 1994) एक भारतीय शास्त्रीय नर्तक, कोरियोग्राफर, लेखक, स्तंभकार, और विदेशी और सार्वजनिक नीति विश्लेषक हैं। वह अमेरिकन बिजनेस मैगज़ीन फोर्ब्स, द हफ़िंगटन पोस्ट, द डिप्लोमैट, ओपन डेमोक्रेसी और लंदन सहित कई प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में नियमित रूप से विदेश नीति और रणनीतिक मामलों में योगदान देती हैं। [1] [2] [3] [4] [5] [6] वह ऑक्सफोर्ड ओडिसी सेंटर के संस्थापक हैं, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ओडिसी नृत्य के प्रचार और प्रशिक्षण और यूनाइटेड किंगडम में अन्य प्रमुख संस्थानों में शामिल है। [7] [8]
बैसाली मोहन्ती (जन्म ५ अगस्त, १९९४) एक भारतीय शास्त्रीय नर्तक, कोरियोग्राफर, लेखक, स्तम्भकार आ विदेशी तथा सार्वजनिक नीति विश्लेषक छी। ओ अमेरिकी वाणिज्य पत्रिका फोर्ब्स, द हफिङ्ग्टन पोस्ट, द डिप्लोम्याट, ओपन डेमोक्रेसी आ लंदन सहित बहुतेक प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रिय प्रकाशनसभमे नियमित रूप सँ विदेश नीति आ रणनीतिक मामलासभमे योगदान दैत अछि। [1] [2] [3] [4] [5] [6] ओ अक्सफोर्ड ओडिसी सेन्टरक संस्थापक छी, जे अक्सफोर्ड विश्वविद्यालयमे ओडिसी नृत्यके प्रचार आ प्रशिक्षण तथा संयुक्त अधिराज्यमे अन्य प्रमुख संस्थानसभमे शामिल अछि। [7] [8]

वह वर्ष 2015-16 के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के लिए एएलसी एसोसिएट हैं। ग्लोबल फेलो। [9]
ओ वर्ष २०१५-१६ क लेल अक्सफोर्ड विश्वविद्यालयक लेल एएलसी एसोसिएट अछि।[1]

बुनियादी जीवन और शिक्षा
जीवनी आ शिक्षा

मनीष सिंह (जन्म 22 सितम्बर 1998) एक युवा भारतीय आधारित उद्यमी एवं विणपन सलाहकार है |[1] वह मार्केटिंग सेवाओ से जुड़ी कंपनी "ZZED मीडिया" के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक हैं।[2]
मनीष सिंह (जन्म 22 सितम्बर 1998) एकटा युवा भारतीय आधारित उद्यमी अऊरो विणपन सलाहकार छई |[1] उ मार्केटिंग सेवाओ स जुड़ल कंपनी "ZZED मीडिया" क मुख्य कार्यकारी अधिकारी अऊरो संस्थापक हई।[2]

मनीष का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुआ था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल, मालीघाट से प्राप्त की | करियर के साथ साथ वह वर्तमान समय में इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी की शिक्षा भी प्राप्त कर रहे है |
मनीष के जन्म बिहार मुजफ्फरपुर जिले में होएल रहले अऊर ओकर पढ़ाई डीएवी पब्लिक स्कूल, मालीघाट से भेल | करियर के साथे साथे ऊ ई समय में इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय सौं बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हवे |

2018 में उन्होंने मार्केटिंग सेवाओ से जुड़ी कंपनी "ZZED मीडिया" की स्थापना की - जो नोएडा उत्तरप्रदेश में स्थित है |[3] [4]
2018 में उ मार्केटिंग सेवाओ स जुड़ल कंपनी "ZZED मीडिया" क स्थापना करले - जे नोएडा उत्तरप्रदेश में स्थित ह |[1] [2]

त्रिपुरारि कुमार शर्मा (English: Tripurari, Urdu: تری پراری; जन्म 4 मार्च 1986), जो त्रिपुरारि नाम से प्रसिद्ध हैं, एक भारतीय गीतकार, कवि, रचयिता और पटकथा लेखक हैं। [1] [2] [3] 2019 में उनकी रचनाओं को महाराष्ट्र राज्य बोर्ड 11वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। [4] [5] 2020 में उनकी कविता को भारती भवन की 8वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। [6] [7] ज़ेहानत त्रिपुरारि का एक कविता बैंड है जो विभिन्न कलाकारों के साथ मिलकर काम करता है।
त्रिपुरारि नाम सँ प्रसिद्ध त्रिपुरारि कुमार शर्मा (English: Tripurari, Urdu: تری پراری; जन्म 4 मार्च 1986), एकटा गीतकार, कवि, रचयिता आ पटकथा लेखक छथिन। [1] [2] [3] वर्ष 2019 मे त्रिपुरारिक कविता महाराष्ट्र स्टेट बोर्डक ग्यारहम कक्षा मे सम्मिलित भेल। [4] [5] आ वर्ष 2020 मे भारती भवनक आठम कक्षाक हिंदी पाठ्यपुस्तक मे शामिल भेल। [6] [7] सम्प्रति त्रिपुरारि मुम्बईमे रहि क’ स्वतंत्र रूपसँ सिनेमा/टीवीक लेल गीत आ स्क्रिप्ट लिखैत छैथ।

वर्ष टीवी शो चैनल श्रेय 2015 कुछ बातें कुछ यादें विद अन्नू कपूर सोनी मिक्स पटकथा लेखक 2015 लाइट कैमरा किस्से विद शेखर सुमन सेट मैक्स पटकथा लेखक 2016 संयुक्त टीवी सीरीज जी टीवी गीतकार [11] [12] 2016 ओम शांति ओम स्टार भारत गीतकार
वर्ष टीवी शो चैनल श्रेय 2015 कुछ बातें कुछ यादें विद अन्नू कपूर सोनी मिक्स पटकथा लेखक 2015 लाइट कैमरा किस्से विद शेखर सुमन सेट मैक्स पटकथा लेखक 2016 संयुक्त टीवी सीरीज जी टीवी गीतकार [1] [2] 2016 ओम शांति ओम स्टार भारत गीतकार

त्रिपुरारि का जन्म एक हिंदू परिवार में राम नारायण शर्मा और उर्मिला देवी के घर, समस्तीपुर, बिहार, भारत में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य का अध्ययन किया और जनसंचार में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
त्रिपुरारिक जन्म एकटा हिंदू परिवार में राम नारायण शर्मा और उर्मिला देवीक घर मे, समस्तीपुर, बिहार, भारत में भेल। आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा गाँव आ पटना मे, फेर दिल्ली विश्वविद्यालय सँ हिंदी आ उर्दू साहित्य के अध्ययन।