15 अहाँ सभ केँ एकर बदला मे तँ ई कहबाक चाही जे, "जँ प्रभुक इच्छा होनि तँ हम सभ जीवित रहब आ ई वा ओ काज करब।
१५ तदनुक्त्वा युष्माकम् इदं कथनीयं प्रभोरिच्छातो वयं यदि जीवामस्तर्ह्येतत् कर्म्म तत् कर्म्म वा करिष्याम इति।


" 32 ई एकटा पैघ रहस्य अछि, मुदा हम एकरा एहि रूप मे बुझैत छी जे ई मसीह और हुनकर मण्डलीक सम्बन्धक दिस संकेत करैत अछि।
३२ एतन्निगूढवाक्यं गुरुतरं मया च ख्रीष्टसमिती अधि तद् उच्यते।

7 ओ सभ अकचका कऽ कहलक, "की ई सभ जे बाजि रहल छथि से सभ गलीले प्रदेशक नहि छथि?
७ सर्व्वएव विस्मयापन्ना आश्चर्य्यान्विताश्च सन्तः परस्परं उक्तवन्तः पश्यत ये कथां कथयन्ति ते सर्व्वे गालीलीयलोकाः किं न भवन्ति?

46 जँ मूसाक विश्वास करितहुँ तँ हमरो विश्वास करितहुँ, कारण ओ हमरे बारे मे लिखने छथि।
४६ यदि यूयं तस्मिन् व्यश्वसिष्यत तर्हि मय्यपि व्यश्वसिष्यत, यत् स मयि लिखितवान्।

4 जखन केओ कहैत अछि, "हम पौलुसक चेला छी" आ केओ जे, "हम अपुल्लोसक छी," तँ की अहाँ सभ सांसारिक लोक नहि भेलहुँ?
४ पौलस्याहमित्यापल्लोरहमिति वा यद्वाक्यं युष्माकं कैश्चित् कैश्चित् कथ्यते तस्माद् यूयं शारीरिकाचारिण न भवथ?

3 अनन्त जीवन ई अछि - अहाँ एकमात्र सत्य परमेश्वर केँ, और यीशु मसीह केँ चिन्हनाइ, जकरा अहाँ पठौलहुँ।
3 यस्त्वम् अद्वितीयः सत्य ईश्वरस्त्वया प्रेरितश्च यीशुः ख्रीष्ट एतयोरुभयोः परिचये प्राप्तेऽनन्तायु र्भवति।

21. प्रिय मित्र सभ, जँ अपना सभक मोन अपना सभ केँ दोषी नहि ठहरबैत अछि, तँ अपना सभ परमेश्वरक सामने साहस सँ आबि सकैत छी,
२१ हे प्रियतमाः, अस्मदन्तःकरणं यद्यस्मान् न दूषयति तर्हि वयम् ईश्वरस्य साक्षात् प्रतिभान्विता भवामः।

20 काहेकि जहाँ मोरे नाउँ प दुइ या तीन मोरे मनवइयन क रूप मँ एकट्ठा होत हीं, हुवाँ मइँ ओनके संग हउँ।
२० यतो यत्र द्वौ त्रयो वा मम नान्नि मिलन्ति, तत्रैवाहं तेषां मध्येऽस्मि।

8. तँ अपन मोन ओना जिद्दी नहि बनाबह जेना तोहर सभक पुरखा सभ विद्रोह करैत निर्जन क्षेत्र मे परीक्षाक समय मे कयलकह।
हे देवा असावादित्यो यः पन्था दिवि प्रवाच्यं कृतः स युष्माभिर्नातिक्रमेऽतिक्रमितुं न उल्लङ्घितुं न योग्यः।

44 तेँ अहूँ सभ सदिखन तैयार रहू, कारण मनुष्य-पुत्र एहने समय मे आबि जयताह जाहि समयक लेल अहाँ सभ सोचबो नहि करब जे ओ एखन औताह।
40 अतएव यूयमपि सज्जमानास्तिष्ठत यतो यस्मिन् क्षणे तं नाप्रेक्षध्वे तस्मिन्नेव क्षणे मनुष्यपुत्र आगमिष्यति।

19 जँ मसीह पर अपना सभक आशा मात्र एही जीवन तक सीमित अछि तँ समस्त मनुष्य जाति मे अपने सभक दशा सभ सँ खराब अछि।
१९ ख्रीष्टो यदि केवलमिहलोके ऽस्माकं प्रत्याशाभूमिः स्यात् तर्हि सर्व्वमर्त्येभ्यो वयमेव दुर्भाग्याः।

11 हम अहाँ सभ केँ कहैत छी, पूब आ पश्चिम सँ बहुत लोक आओत और अब्राहम, इसहाक आ याकूबक संग स्वर्गक राज्य मे भोज खयबाक लेल बैसत, 12 मुदा जे सभ ⌞अब्राहमक वंशज होयबाक कारणेँ⌟ राज्यक उत्तराधिकारी होयबाक चाही, से सभ बाहर अन्हार मे भगाओल जायत, जतऽ लोक कानत आ दाँत कटकटाओत।
11 अन्यच्चाहं युष्मान् वदामि, बहवः पूर्व्वस्याः पश्चिमायाश्च दिश आगत्य इब्राहीमा इस्हाका याकूबा च साकम् मिलित्वा समुपवेक्ष्यन्ति;

8 आब जँ अपना सभ मसीहक संग मरलहुँ तँ अपना सभ विश्वास करैत छी जे हुनका संग जीवित सेहो रहब।
८ अतएव यदि वयं ख्रीष्टेन सार्द्धम् अहन्यामहि तर्हि पुनरपि तेन सहिता जीविष्याम इत्यत्रास्माकं विश्वासो विद्यते।

ओ वर्षा नहि होयबाक लेल पूरा मोन सँ प्रार्थना कयलनि और साढ़े तीन वर्ष तक वर्षा नहि भेल।
१७ य एलियो वयमिव सुखदुःखभोगी मर्त्त्य आसीत् स प्रार्थनयानावृष्टिं याचितवान् तेन देशे सार्द्धवत्सरत्रयं यावद् वृष्टि र्न बभूव।

की धनिके लोक सभ अहाँ सभक शोषण नहि करैत अछि, आ अहाँ सभ केँ अदालत मे घिसिअबैत नहि लऽ जाइत अछि?
६ धनवन्त एव किं युष्मान् नोपद्रवन्ति बलाच्च विचारासनानां समीपं न नयन्ति?

40. अहूँ सभ सदिखन तैयार रहू, कारण मनुष्य-पुत्र एहने समय मे आबि जयताह जाहि समयक लेल अहाँ सभ सोचबो नहि करब जे ओ एखन औताह।
40 अतएव यूयमपि सज्जमानास्तिष्ठत यतो यस्मिन् क्षणे तं नाप्रेक्षध्वे तस्मिन्नेव क्षणे मनुष्यपुत्र आगमिष्यति।

2. अहाँ सभ केँ तँ मोन होयत जे प्रभु यीशुक दिस सँ हम सभ कोन-कोन आदेश अहाँ सभ केँ देलहुँ।
२ यतो वयं प्रभुयीशुना कीदृशीराज्ञा युष्मासु समर्पितवन्तस्तद् यूयं जानीथ।

36 मुदा जेना अहाँ सभ केँ कहने छलहुँ, अहाँ सभ हमरा देखने छी और तैयो विश्वास नहि करैत छी।
३६ मां दृष्ट्वापि यूयं न विश्वसिथ युष्मानहम् इत्यवोचं।

1. "हम अहाँ सभ केँ विश्वास दिअबैत छी जे, जे द्वारि बाटे भेँड़शाला मे प्रवेश नहि करैत अछि, बल्कि देवाल पर चढ़ि कऽ कोनो दोसर बाटे प्रवेश करैत अछि, से चोर और डाकू होइत अछि।
1 अहं युष्मानतियथार्थं वदामि, यो जनो द्वारेण न प्रविश्य केनाप्यन्येन मेषगृहं प्रविशति स एव स्तेनो दस्युश्च।

7 हम अहाँ सभ सँ एखन रस्ते मे भेँट नहि करऽ चाहैत छी, बल्कि, जँ प्रभुक इच्छा होयतनि, तँ हमरा बेसी दिन तक अहाँ सभक संग रहबाक आशा अछि।
७ यतोऽहं यात्राकाले क्षणमात्रं युष्मान् द्रष्टुं नेच्छामि किन्तु प्रभु र्यद्यनुजानीयात् तर्हि किञ्चिद् दीर्घकालं युष्मत्समीपे प्रवस्तुम् इच्छामि।

7. यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभक विश्वासक समाचार जानि हमरा सभ केँ अपन सभ कष्ट-विपत्ति मे अहाँ सभक विषय मे प्रोत्साहन भेटल।
७ हे भ्रातरः, वार्त्तामिमां प्राप्य युष्मानधि विशेषतो युष्माकं क्लेशदुःखान्यधि युष्माकं विश्वासाद् अस्माकं सान्त्वनाजायत;

11 प्रिय मित्र सभ, जँ परमेश्वर अपना सभ सँ एहन प्रेम कयलनि, तँ अपनो सभ केँ एक-दोसर सँ प्रेम करबाक चाही।
११ हे प्रियतमाः, अस्मासु यदीश्वरेणैतादृशं प्रेम कृतं तर्हि परस्परं प्रेम कर्त्तुम् अस्माकमप्युचितं।

ओकर फोन व्यस्त अछि।
तस्य दूरभाषा व्यस्ता अस्ति।

9 हम मण्डलीक सदस्य सभ केँ एक चिट्ठी लिखने छलहुँ, मुदा दियुत्रिफेस, जे सभक प्रमुख बनबाक धुनि मे अछि, से हमरा सभक बात नहि मानैत अछि।
९ समितिं प्रत्यहं पत्रं लिखितवान् किन्तु तेषां मध्ये यो दियत्रिफिः प्रधानायते सो ऽस्मान् न गृह्लाति।

11 पहिने ओ अहाँक लेल बेकाजक छल, मुदा आब ओ अहूँक लेल आ हमरो लेल उपयोगी भऽ गेल अछि।
११ स पूर्व्वं तवानुपकारक आसीत् किन्त्विदानीं तव मम चोपकारी भवति।

22 जे महिमा अहाँ हमरा देलहुँ से हम हुनका सभ केँ दऽ देने छिऐन, जाहि सँ ओ सभ एक होथि, जेना अपना सभ एक छी - 23 हँ, हम हुनका सभ मे और अहाँ हमरा मे, जाहि सँ ओ सभ पूर्ण एकता मे सिद्ध भऽ जाथि।
२२ यथावयोरेकत्वं तथा तेषामप्येकत्वं भवतु तेष्वहं मयि च त्वम् इत्थं तेषां सम्पूर्णमेकत्वं भवतु, त्वं प्रेरितवान् त्वं मयि यथा प्रीयसे च तथा तेष्वपि प्रीतवान् एतद्यथा जगतो लोका जानन्ति

4 "हे हमर मित्र सभ, हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे, तकरा सभ सँ नहि डेराउ जे सभ शरीर केँ मारि दैत अछि मुदा आओर किछु नहि कऽ सकैत अछि।
4 हे बन्धवो युष्मानहं वदामि, ये शरीरस्य नाशं विना किमप्यपरं कर्त्तुं न शक्रुवन्ति तेभ्यो मा भैष्ट।

5 धर्म-नियम मे मूसा हमरा सभ केँ आज्ञा देलनि जे एहन स्त्रीगण केँ पाथर मारि कऽ मारि देबाक चाही।
५ एतादृशलोकाः पाषाणाघातेन हन्तव्या इति विधिर्मूसाव्यवस्थाग्रन्थे लिखितोस्ति किन्तु भवान् किमादिशति?

की ओ सभ वैह लोक नहि छल जकरा सभ केँ मूसा मिस्र देश सँ बाहर निकाललनि?
किं मूससा मिसरदेशाद् आगताः सर्व्वे लोका नहि?

13 और अहाँ सभ हमरा नाम सँ जे किछु माँगब, से हम पूरा करब, जाहि सँ पुत्र द्वारा परमेश्वरक महिमा प्रगट होयत।
१३ यथा पुत्रेण पितु र्महिमा प्रकाशते तदर्थं मम नाम प्रोच्य यत् प्रार्थयिष्यध्वे तत् सफलं करिष्यामि।

8 एहि लेल, हम एकटा निवेदन करैत छी, ओना तँ हमरा मसीह सँ भेटल अधिकार अछि जे हम अहाँ केँ आज्ञा दी जे अहाँ केँ की करबाक चाही, तैयो हम आज्ञा नहि दऽ कऽ, 9 प्रेमक आधार पर अहाँ सँ एकटा विनतिए करैत छी - हम पौलुस, जे आब बूढ़ भऽ गेल छी आ मसीह यीशुक लेल एखन जहल मे छी ।
९ इदानीं यीशुख्रीष्टस्य बन्दिदासश्चैवम्भूतो यः पौलः सोऽहं त्वां विनेतुं वरं मन्ये।

"हम अहाँ सभ केँ विश्वास दिअबैत छी जे, जे द्वारि बाटे भेँड़शाला मे प्रवेश नहि करैत अछि, बल्कि देवाल पर चढ़ि कऽ कोनो दोसर बाटे प्रवेश करैत अछि, से चोर और डाकू होइत अछि।
1 अहं युष्मानतियथार्थं वदामि, यो जनो द्वारेण न प्रविश्य केनाप्यन्येन मेषगृहं प्रविशति स एव स्तेनो दस्युश्च।

39. ओहि नगरक बहुत सामरी लोक ओहि स्त्रीक ई गवाही जे, जे किछु हम कहियो कयने छी से सभ बात ओ हमरा कहलनि, से सुनि यीशु पर विश्वास कयलक।
39 यस्मिन् काले यद्यत् कर्म्माकार्षं तत्सर्व्वं स मह्यम् अकथयत् तस्या वनिताया इदं साक्ष्यवाक्यं श्रुत्वा तन्नगरनिवासिनो बहवः शोमिरोणीयलोका व्यश्वसन्।

4 हमरा लेल एहि सँ बड़का आनन्दक बात दोसर कोनो नहि भऽ सकैत अछि, जे हम ई सुनी जे हमर बच्चा सभ सत्य पर चलि रहल अछि।
४ मम सन्तानाः सत्यमतमाचरन्तीतिवार्त्तातो मम य आनन्दो जायते ततो महत्तरो नास्ति।

1:1 आदरणीय थियुफिलुस, हम अपन पहिल पुस्तक मे यीशुक सभ काज आ शिक्षा जे ओ शुरू सँ लऽ कऽ स्वर्ग मे उठा लेल गेलाह ताहि दिन धरि कयलनि तकर सम्पूर्ण विवरण लिखने छी।
१ हे थियफिल, यीशुः स्वमनोनीतान् प्रेरितान् पवित्रेणात्मना समादिश्य यस्मिन् दिने स्वर्गमारोहत् यां यां क्रियामकरोत् यद्यद् उपादिशच्च तानि सर्व्वाणि पूर्व्वं मया लिखितानि।

11 किएक तँ, यौ भाइ लोकनि, हमरा खलोएक घरक किछु लोक द्वारा एहि बातक जानकारी भेटल अछि जे अहाँ सभक बीच झगड़ा चलि रहल अछि।
११ हे मम भ्रातरो युष्मन्मध्ये विवादा जाता इति वार्त्तामहं क्लोय्याः परिजनै र्ज्ञापितः।

34 अहाँ सभ जहल मे राखल गेल लोकक संग सहानुभूति रखलहुँ, और अहाँ सभक धन-सम्पत्ति जखन लुटि लेल गेल तँ तकरा खुशी सँ बरदास्त कयलहुँ, कारण अहाँ सभ केँ बुझल छल जे अहाँ सभ लग एहि सँ नीक और टिकऽ वला सम्पत्ति अछि।
३४ यूयं मम बन्धनस्य दुःखेन दुःखिनो ऽभवत, युष्माकम् उत्तमा नित्या च सम्पत्तिः स्वर्गे विद्यत इति ज्ञात्वा सानन्दं सर्व्वस्वस्यापहरणम् असहध्वञ्च।

4 मसीहे अहाँ सभक जीवन छथि, और ओ जहिया फेर औताह, तहिया अहूँ सभ हुनका महिमाक वैभव मे सहभागी होयब आ ई बात प्रगट होयत जे अहाँ सभ हुनके लोक छिऐन।
४ अस्माकं जीवनस्वरूपः ख्रीष्टो यदा प्रकाशिष्यते तदा तेन सार्द्धं यूयमपि विभवेन प्रकाशिष्यध्वे।

1 आदरणीय थियुफिलुस, हम अपन पहिल पुस्तक मे यीशुक सभ काज आ शिक्षा जे ओ शुरू सँ लऽ कऽ स्वर्ग मे उठा लेल गेलाह ताहि दिन धरि कयलनि तकर सम्पूर्ण विवरण लिखने छी।
१ हे थियफिल, यीशुः स्वमनोनीतान् प्रेरितान् पवित्रेणात्मना समादिश्य यस्मिन् दिने स्वर्गमारोहत् यां यां क्रियामकरोत् यद्यद् उपादिशच्च तानि सर्व्वाणि पूर्व्वं मया लिखितानि।

4. अहाँ सभ जखन ओकरा पढ़ब तँ मसीहक सम्बन्ध मे परमेश्वरक गुप्त योजनाक ज्ञान हमरा की भेटल अछि से अहाँ सभ बुझि जायब।
४ अतो युष्माभिस्तत् पठित्वा ख्रीष्टमधि तस्मिन्निगूढे भावे मम ज्ञानं कीदृशं तद् भोत्स्यते।

29 ओ यूनानी भाषी यहूदी सभ सँ वाद-विवाद करैत छलाह मुदा ओ सभ हिनका जान सँ मारि देबाक कोशिश करऽ लागल।
२९ तस्माद् अन्यदेशीयलोकैः सार्द्धं विवादस्योपस्थितत्वात् ते तं हन्तुम् अचेष्टन्त।

49 अहाँ सभक पुरखा लोकनि निर्जन क्षेत्र मे मन्ना वला रोटी खयलनि, और तैयो मरलाह।
४९ युष्माकं पूर्व्वपुरुषा महाप्रान्तरे मन्नाभक्ष्यं भूक्त्तापि मृताः

हमर भेँड़ा हमर आवाज सुनैत अछि।
27 मम मेषा मम शब्दं शृण्वन्ति तानहं जानामि ते च मम पश्चाद् गच्छन्ति।

की ई सम्भव अछि जे अहाँ सभक बीच एको गोटे एहन बुद्धिमान नहि होइ जे भाइ-भाइक बीच फैसला कऽ सकी?
५ अहं युष्मान् त्रपयितुमिच्छन् वदामि यृष्मन्मध्ये किमेकोऽपि मनुष्यस्तादृग् बुद्धिमान्नहि यो भ्रातृविवादविचारणे समर्थः स्यात्?

26 अहाँ सभ केँ फेर देखबाक लेल हुनका मोन लागल छनि आ एहि बात सँ चिन्तित छथि जे अहाँ सभ हुनका बिमारीक सम्बन्ध मे सुनि लेने छलहुँ।
२६ यतः स युष्मान् सर्व्वान् अकाङ्क्षत युष्माभिस्तस्य रोगस्य वार्त्ताश्रावीति बुद्ध्वा पर्य्यशोचच्च।

8 सर्वप्रथम हम यीशु मसीहक माध्यम सँ अहाँ सभक लेल अपना परमेश्वर केँ धन्यवाद दैत छिऐन, किएक तँ अहाँ सभक विश्वासक चर्चा समस्त संसार मे पसरि रहल अछि।
८ प्रथमतः सर्व्वस्मिन् जगति युष्माकं विश्वासस्य प्रकाशितत्वाद् अहं युष्माकं सर्व्वेषां निमित्तं यीशुख्रीष्टस्य नाम गृह्लन् ईश्वरस्य धन्यवादं करोमि।

25 एतबे मे केओ आबि कऽ कहलकनि जे, "सुनैत छी, जकरा सभ केँ अपने लोकनि जहल मे बन्द कयने छलहुँ से सभ एखन मन्दिर मे ठाढ़ भऽ कऽ लोक सभ केँ शिक्षा दऽ रहल अछि।
२५ एतस्मिन्नेव समये कश्चित् जन आगत्य वार्त्तामेताम् अवदत् पश्यत यूयं यान् मानवान् कारायाम् अस्थापयत ते मन्दिरे तिष्ठन्तो लोकान् उपदिशन्ति।

39. तेँ ओ सभ विश्वास नहि कऽ सकल, कारण, जेना यशायाह दोसर ठाम कहैत छथि,
39 ते प्रत्येतुं नाशन्कुवन् तस्मिन् यिशयियभविष्यद्वादि पुनरवादीद्,

हँ, हम पौलुस, बेर-बेर अयबाक प्रयत्न कयलहुँ, मुदा शैतान हमरा सभ केँ रोकि देलक।
१८ द्विरेककृत्वो वा युष्मत्समीपगमनायास्माकं विशेषतः पौलस्य ममाभिलाषोऽभवत् किन्तु शयतानो ऽस्मान् निवारितवान्।

29. कारण, अहाँ सभ केँ ई वरदान देल गेल अछि जे अहाँ सभ मात्र मसीह पर विश्वासे नहि करी, बल्कि हुनका लेल कष्ट सेहो सही।
२९ यतो येन युष्माभिः ख्रीष्टे केवलविश्वासः क्रियते तन्नहि किन्तु तस्य कृते क्लेशोऽपि सह्यते तादृशो वरः ख्रीष्टस्यानुरोधाद् युष्माभिः प्रापि,