आउ हम जानऽ हलियो, कि तूँ हमेशे हमर बात सुन्नऽ ह; लेकिन ई सब बात हम हियाँ परी खड़ी लोग खातिर कहलियो, ताकि ओकन्हीं सब के विश्वास हो जाय, कि तूँ हमरा भेजलऽ ह ।
४२ त्वं सततं शृणोषि तदप्यहं जानामि, किन्तु त्वं मां यत् प्रैरयस्तद् यथास्मिन् स्थाने स्थिता लोका विश्वसन्ति तदर्थम् इदं वाक्यं वदामि।
वो छोले लेके आवे बाग़ में
आख़ेरत इंसान रहमत इनायत जन्नत.
ई देखके मानसी आउ गिल-पिल में पड़ गेलन, पुछलन - "बात का हे सलीमा ?
७ सर्व्वएव विस्मयापन्ना आश्चर्य्यान्विताश्च सन्तः परस्परं उक्तवन्तः पश्यत ये कथां कथयन्ति ते सर्व्वे गालीलीयलोकाः किं न भवन्ति?
परमेश्वरवा हमनी पर अपन प्रेमवा के भलइया इ तरह से कैलको कि जब हमनी पपीयन ही हलहु तबे मसीहवा हमनी लगी मरलो।
८ किन्त्वस्मासु पापिषु सत्स्वपि निमित्तमस्माकं ख्रीष्टः स्वप्राणान् त्यक्तवान्, तत ईश्वरोस्मान् प्रति निजं परमप्रेमाणं दर्शितवान्।
ई लेके कहलन कि जे गछल हल से पूरा कर द, तऽ सादी के दिन-तारीख तय हो जायत ।
एतस्याः संहितायाः पूर्णः ग्रन्थः अनुलब्धः।
' मारथा उनका बोललइ - 'जानऽ ही, कि अंतिम दिन एतवार के ऊ जी उठतइ ।
24 मर्था व्याहरत् शेषदिवसे स उत्थानसमये प्रोत्थास्यतीति जानेऽहं।
देश में 25वा उच्च न्यायलय
देश मे 25 वां उच्च न्यायालय
हम तोरा ई पहिले से बता रहलियो ह कि खुदा-न-खास्ते कहीं अइसन हो जाय, हलाँकि हमरा विश्वास हउ कि तोरा पर उनकर अच्छे असर पड़तउ ।
29 तस्या घटनायाः समये यथा युष्माकं श्रद्धा जायते तदर्थम् अहं तस्या घटनायाः पूर्व्वम् इदानीं युष्मान् एतां वार्त्तां वदामि।
; कुछ हिआँ के सम्पत्ति पर आझो गिद्ध निगाह रख रहलथिन हे आउ रोज कोई-न-कोई अइसन काम कर रहलथिन हे कि कोई तितिमा से साधु-साध्वी भाग जाए ।
५ अपरञ्च कश्चिज्जनो दिनाद् दिनं विशेषं मन्यते कश्चित्तुु सर्व्वाणि दिनानि समानानि मन्यते, एकैको जनः स्वीयमनसि विविच्य निश्चिनोतु।
हम आउ नगीच अइलिअइ आउ गैलरी के कोना में छिप गेलिअइ ।
२१ ततः परम् अहं सुरियां किलिकियाञ्च देशौ गतवान्।
जे भी खायी एके दिलवाला खाके हो जाए मतवाला
भोगा भोग्यास्तेभ्यो व्यतिरिक्ते भोक्तरि ।
' मारथा उनका बोललइ - 'जानऽ ही, कि अंतिम दिन एतवार के ऊ जी उठतइ ।
२४ मर्था व्याहरत् शेषदिवसे स उत्थानसमये प्रोत्थास्यतीति जानेऽहं।
चहै तौ मारै औ जिउ लेई ॥
"तत् एव "मरुतः च पालयन्तु ।
वो छोले लेके आवे बाग़ में
तो अभी जन्नत सा मधुवन पाओ॥
चाहे बोलो, चाहे धीरे - धीरे बोलो,
वा अर्धमासस्य रात्रयः ।
"आउ कुच्छो नयँ जरूरत हइ ?
भवान् अन्यत् किमपि इच्छति वा ?
'तेरा नाम क्या हय ?
भवतः नाम किं ?
ई तरह ऊ पढ़ते-पढ़ते 19-मा छंद (verse) पर पहुँचलइ -"आउ बहुत सन यहूदी मारथा आउ मरियम के पास अइते गेलइ, ओकन्हीं के भाय के बारे शोक में ढाढ़स बन्हावे खातिर ।
19 तस्माद् बहवो यिहूदीया मर्थां मरियमञ्च भ्यातृशोकापन्नां सान्त्वयितुं तयोः समीपम् आगच्छन्।
अब ऊ हमरा जोरे चले लगलन ।
सः मया सह आसीत् ।
की नाम हइ उनकर !
तेषां नामानि ।
बैसि गेलहुं।
आसनं पीठादि ।
वो छोले लेके आवे बाग़ में
जन्नत जहां जन्नत यहाँ
चहै तौ मारै औ जिउ लेई ॥
मरणान्तं च जीवितम्
हम तखने ज़म्योतोव के थोड़े झड़लिअइ - ई सब बात खाली हमन्हीं बीच हइ, भाय; किरपा करके, कुछ इशारो नयँ करिहऽ, जे कुछ जन्नऽ ह; हम नोटिस कइलिए ह, कि ऊ गंभीर हइ; ई बात लविज़ा के घर पर के हइ - लेकिन आझ, आझ सब कुछ साफ हो गेलइ ।
१२ आपल्लुं भ्रातरमध्यहं निवेदयामि भ्रातृभिः साकं सोऽपि यद् युष्माकं समीपं व्रजेत् तदर्थं मया स पुनः पुनर्याचितः किन्त्विदानीं गमनं सर्व्वथा तस्मै नारोचत, इतःपरं सुसमयं प्राप्य स गमिष्यति।
"आउ बहुत सन यहूदी मारथा आउ मरियम के पास अइते गेलइ, ओकन्हीं के भाय के बारे शोक में ढाढ़स बन्हावे खातिर ।
19 तस्माद् बहवो यिहूदीया मर्थां मरियमञ्च भ्यातृशोकापन्नां सान्त्वयितुं तयोः समीपम् आगच्छन्।
हालो - हलो (अभिवादन)
(ताल इति ?
छोरा होवे या छोकरिया,
या या च यथाविधं पुत्त्रमाशासीत तस्यास्तस्या-
आशीर्वाद देवे वला तो ओकरा कोय नयँ हइ ।
वास्यर्थम्, काक्वर्थम् इत्यत्र अपि बहिरङ्गलक्षणस्य यणादेशस्य असिद्धत्वात् संयोगादिलोपो न भवति।
रहलई जेइमें अठासी
एवं ब्रुवाणं पुरुषार्थभाजनं जनार्दनं प्राञ्जलयः प्रचेतसः
प्रेम हईं ऊ हमार कवनो शरीर के चाह नईखे,
२० यतः सोऽस्मदर्थं तिरस्करिण्यार्थतः स्वशरीरेण नवीनं जीवनयुक्तञ्चैकं पन्थानं निर्म्मितवान्,
Alarmingly एलार्मिंगली / अलर्मिंगली / एलार्मिंगलय
alarm अलार्म / अलारम / एलार्म
तऽ हई सुनऽ !
मम वचनं श्रृणु।
आउ अगर हमरा से बत्तर मिलतउ, त हमरा आद करमँऽ ।
४ किन्तु यदि तत्र ममापि गमनम् उचितं भवेत् तर्हि ते मया सह यास्यन्ति।
हम तोर तीन घंटा से इंतजार कर रहलियो ह; दू तुरी हम हियाँ अइलियो हल, तूँ सुत्तल हलऽ ।
१ एतत्तृतीयवारम् अहं युष्मत्समीपं गच्छामि तेन सर्व्वा कथा द्वयोस्त्रयाणां वा साक्षिणां मुखेन निश्चेष्यते।
- हमरा खाना पसन हइ ।
अहं व्यजनं इच्छामि।
ओकरा पास बड़गर सेना हकइ, आउ ऊ कहऽ हइ कि शहर नयँ देत ।
प्राचीनः कन्नडकविः श्रीविजयः एतस्य नगरस्य महाकोपणनगरम् इति उल्लिखितवान् अस्ति ।
तों तो पहिलहीं ने अइलऽ हल ई घर में, बान्ह के रखतऽ हल ।
७ पूर्व्वं यदा यूयं तान्युपाजीवत तदा यूयमपि तान्येवाचरत;
वो छोले लेके आवे बाग़ में
जो जानां जन्नत छोड़ करके,
लागे बड़ी डरवा हो डरवा हो
भीतोऽरतिभ्यः ।
उठ मानवा जागा हो,
मानुष्यो बलवान् गन्धो घ्राणं तर्पयतीव मे ॥
जइसे, गेलन, गेलथिन, गेलखिन, गेलखुन - ई सभ्भे रूप चले कि एक्के रूप ?
७ सर्व्वएव विस्मयापन्ना आश्चर्य्यान्विताश्च सन्तः परस्परं उक्तवन्तः पश्यत ये कथां कथयन्ति ते सर्व्वे गालीलीयलोकाः किं न भवन्ति?
वो छोले लेके आवे बाग़ में
इतरियाते जन्नत (जन्नत की ख़ुशबू)
ये लाडका हय अल्लाह
निःसंदेह अल्लाह
अब ऊ हमरा जोरे चले लगलन ।
सः मया सह उपविष्टः आसीत् ।
tin: कलई करना .
कोलाहलः कलकलः
जबेॅ बापें सबकुछ दै देलकै, तेॅ ओकरोॅ देहे गिरी गेलै।
३५ पिता पुत्रे स्नेहं कृत्वा तस्य हस्ते सर्व्वाणि समर्पितवान्।
मत होवऽ कि तोहरा हमर ई सूनसान इलाका में भेज देवल गेलो ह ।
१६ यतो युष्माभि र्मम प्रयोजनाय थिषलनीकीनगरमपि मां प्रति पुनः पुनर्दानं प्रेषितं।
गेलै दोनों हार।
उभौ अपि पराजितवान् ।
ऊ सोचे लगल कि हम तो धरम के बेटा ही, जबकि दाह-संस्कार के अधिकार तो अप्पन बेटा के होवऽ हे ।
यथाहं भोस्त्वमप्येवं पुत्रशोकाद् विपत्स्यसे ।
या छल्ला बनवा ले, शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के
अथवा घृतादिना पीपिवांसं धर्मं प्रवर्ग्यम् "अच्छ अभिलक्ष्य इह यातम् ।